Book Title: Kasaypahudam Part 04
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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भी यह अर्थपद जानना चाहिए। इस अर्थपदके अनुसार १ कदाचित् सब जीव मोहनीयको उत्कृष्ट स्थितिसे रहित हैं; २ कदाचित् बहुत जीव मोहनीयको उत्कृष्ट स्थितिसे रहित हैं और एक जीव उत्कृष्ट स्थितिवाला है, ३ कदाचित् बहुत जीव मोहनीयको उत्कृष्ट स्थितिसे रहित हैं और बहुत जीव उत्कृष्ट स्थितिवाले हैं ये तीन भङ्ग होते हैं। अनुत्कृष्ट स्थितिकी अपेक्षा , कदाचित् सब जीव मोहनीयकी अनुत्कृष्ट स्थितिवाले हैं, २ कदाचित् बहुत जीव मोहनीयकी अनुत्कृष्ट स्थितिवाले हैं और एक जीव अनुत्कृष्ट स्थितिसे रहित है, ३ कदाचित् बहुत जीव मोहनीय की अनुत्कृष्ट स्थितिवाले हैं और बहुत जोव अनुत्कृष्ट स्थितिसे रहित हैं ये तीन भंग होते हैं। उत्तर २८ प्रकृतियों की अपेक्षा ये ही भङ्ग जानने चाहिए। मोहनीय सामान्य की जघन्य और अजधन्य स्थितिकी अपेक्षा भी जो उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिकी अपेक्षा तीन तीन भङ्ग कहे हैं उसी प्रकार तीन तीन भंग जानने चाहिए । २८ उत्तर प्रकृतियोंकी अपेक्षा भी इसी प्रकार भङ्ग घटित कर लेने चाहिए । तात्पर्य यह है कि जो उत्कृष्ट स्थितिकी अपेक्षा तीन भङ्ग कहे हैं वे सर्वत्र जघन्य स्थितिकी अपेक्षा तीन भङ्ग जानने चाहिए और जो अनुत्कृष्ट स्थितिकी अपेक्षा तीन भङ्ग कहे हैं वे सर्वत्र अजघन्य स्थितिकी अपेक्षा तीन भङ्ग जानने चाहिए । गति आदि मार्गणाओं में भी अपनी अपनी विशेषताको जानकर ये भङ्ग ले आने चाहिए।
भागाभाग-मोहनीय सामान्यकी अपेक्षा उत्कृष्ट स्थितिवाले जीव अनन्तवें भागप्रमाण हैं और अनुत्कृष्ट स्थितिवाले जीव अनन्त बहुभागप्रमाण हैं । इसी प्रकार मोहनीयकी छब्बीस उत्तर प्रकृतियोंकी अपेक्षा भागाभाग जानना चाहिए । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी अपेक्षा उत्कृष्ट स्थितिवाले जीव असंख्यातवें भागप्रमाण हैं और अनुत्कृष्ट स्थितिवाले जीव असंख्यात बहुभागप्रमाण हैं। मोहनीय सामान्य और उत्तर प्रकृतियोंकी अपेक्षा जघन्य और अजघन्य स्थितिवालोंका इसी प्रकार भागाभाग है। अर्थात् जघन्य स्थितिवाले अनन्तवें भागप्रमाण हैं और अजघन्य स्थितिबाले अनन्त बहुभागप्रमाण हैं। तथा सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी अपेक्षा जघन्य स्थितिवाले जीव असंख्यातवें भागप्रमाण हैं और अजघन्य स्थितिवाले जीव असंख्यात बहुभागप्रमाण हैं। गति आदि मार्गणाओंमें अपनी अपनी संख्या आदिको जानकर यह भागाभाग घटित कर लेना चाहिए।
परिमाण -मोहनीय सामान्यकी अपेक्षा उत्कृष्ट स्थितिवाले जीव असंख्यात हैं और अनुत्कृष्ट स्थितिवाले जीव अनन्त हैं। इसी प्रकार छब्बीस उत्तर प्रकृतियोंकी अपेक्षासे यह परिमाण जानना चाहिए । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कष्ट और अनत्कष्ट स्थितिवाले जीव असंख्यात हैं। मोहनीय सामान्यकी अपेक्षा जघन्य स्थितिवाले जीव संख्यात और अजघन्य स्थितिवाले जीव अनन्त हैं। छब्बीस उत्तर प्रकृतियोंकी अपेक्षा इसी प्रकार परिमाण जानना चाहिए । सम्यक्त्वकी अपेक्षा जघन्य स्थितिवाले जीव संख्यात हैं और अजघन्य स्थितिवाले जीव असंख्यात हैं। तथा सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य और अजघन्य स्थितिवाले जीव असंख्यात हैं। गति आदि मार्गणाओंमें अपने अपने परिमाणको और स्वामित्वको जानकर यह घटित कर लेना चाहिए।
क्षेत्र-मोहनीयकी उत्कृष्ट और जघन्य स्थितिवालोंका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है और अनुत्कृष्ट व अजघन्य स्थितिवालोंका क्षेत्र सर्व लोकप्रमाण है। मिथ्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोकषायोंकी अपेक्षा इसी प्रकार क्षेत्र जानना चाहिए । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी अपेक्षा उत्कृष्ट, अनुत्कृष्ट, जघन्य और अजघन्य स्थितिवालोंका क्षेत्र लोक के असंख्यातवें भागप्रमाण है। गति आदि मार्गणाओंमें अपने अपने स्वामित्वको व क्षेत्रको जानकर यह घटित कर लेना चाहिए ।
स्पर्शन-मोहनीय सामान्यकी अपेक्षा उत्कृष्ट स्थितिवालोंका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण, विहारादिकी अपेक्षा अतीत स्पर्शन त्रसनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण और मारणान्तिक पदको अपेक्षा त्रसनालीके कुछ कम तेरह बटे चौदह भागप्रमाण है । तथा अनुत्कृष्ट स्थितिवालोंका सर्व लोकप्रमाण स्पर्शन है। उत्तर प्रकृतियोंकी अपेक्षा मिथ्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोकषायोंकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिवालोंका यही स्पर्शन है। इतनी विशेषता है कि स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी उत्कृष्ट स्थिति
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