Book Title: Karmarth Sutram
Author(s): Labhsagar Gani
Publisher: Agamoddharak Granthmala

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Page 6
________________ सर्जन अने सर्जक पीठिका :- जगतना अन्य दर्शनो-धर्मो स्वीकारे या नहि, परन्तु आ एक सनातन सत्य छे के जैनदर्शनना स्याद्वाद अने कर्म सिद्धांतनी तुलना कोई टकी शके तेम नथी. स्याद्वाद : आ सिद्धांतनु बीजु नाम छे भिन्न अपेक्षाए प्रत्येक पदार्थमां अस्तित्व, नास्तित्व स्वीकार तेनुं नाम स्याद्वाद छे. अपेक्षावाद - भिन्न विगेरे अनेक धर्मोनो आ सिद्धांत एवो मजबूत सिद्धांत छे के अन्य दर्शनकारो सिद्धांत कदाच न स्वीकारे परंतु सामान्य जनव्यवहारमां तेओ पण आ सिद्धांतने अनुसरता होय छे. जेमके घणी वखत तबीयत केम छे ? आना उत्तरमां जणावातु होय छे के ठीकाठीक छे आ उत्तरमां स्पष्टपणे स्याद्वाद दृष्टिगोचर थाय छे. कर्म सिद्धांत : – स्याद्वाद पछीनो आ सिद्धांत छे जैनदर्शनमां जणाववामां आवेला नवतत्त्व [ जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आश्रव, संवर निर्जरा, बंध, मोक्ष ] मांथी छेल्ला साते तत्त्वो मुख्यतया कर्मसिद्धांतने लगता रहेला छे. कर्मने भाग्य - विधि विगेरे शब्दोथी तो इतर-दर्शनकारो पण आलेखे छे, तेमज मानव जीवनमां पूर्वकर्मनी महत्ता विशेषतया समायेली छे. सदाचारथी शुभ कर्म दुराचारथी अशुभ कर्म बंधाय छे. पूर्वे जे कर्म बांध्य होय ते आत्माने भोगवबु पडे छे कर्मना बंधनो तूटे त्यारे आत्मा मुक्त बने छे विगेरे विगेरे बाबतो द्वारा इतर धर्मोमां पण कर्मनी महत्ता दर्शावाइ होय छे. परंतु तेओ कर्मना सिद्धांतमां ईश्वरतत्त्वने पण मेळवी दे

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