Book Title: Karmagrantha Part 1 2 3 Karmavipaka Karmastav Bandhswamitva Author(s): Devendrasuri, Sukhlal Sanghavi Publisher: Parshwanath VidyapithPage 10
________________ (९) गाथा पृष्ठ i-xxxiv - - - १ अनुक्रमणिका कर्मग्रन्थ भाग-१ विषय प्रस्तावना मंगल और कर्म का स्वरूप कर्म और जीव का सम्बन्ध कर्मबन्ध के चार भेद और मूल तथा उत्तर प्रकृतियों की संख्या मूल प्रकृतियों के नाम तथा प्रत्येक के उत्तर भेदों की संख्या उपयोग का स्वरूप मति आदि पाँच ज्ञान मति आदि पाँच ज्ञान और व्यञ्जनावग्रह अर्थावग्रह आदि चौबीस तथा श्रुतज्ञान के उत्तर भेदों की संख्या श्रुतनिश्रित मतिज्ञान के बहु, अल्प आदि बारह भेद अश्रुतनिश्रित मतिज्ञान के औत्पातिकी आदि चार भेद मतिज्ञान के अट्ठाईस भेदों का यन्त्र श्रुतज्ञान के चौदह भेद श्रुतज्ञान के बीस भेद चौदह पूर्वो के नाम अवधि, मन:पर्यव और केवलज्ञान के भेद दृष्टान्तपूर्वक ज्ञानावरण और दर्शनावरण का स्वरूप चार दर्शन तथा उनके आवरण १ 3 . ९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 ... 346