Book Title: Karm Prakruti
Author(s): Shivsharmsuri, Chirantanacharya, Malaygirisuri, Yashovijay Gani
Publisher: Jin Gun Aradhak Trust

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Page 1417
________________ २ यशोऽयशोभ्याम् प्रर्याप्तानां कर्मप्रकृतिः ॥१२८॥ २९. उच्छ्वासाधिका २८ २९ उद्योतसहिता २८ उच्छ्वासात् प्राक् ३० स्वरसहिता २९ उच्छवासपर्याप्तानां देहपर्याप्तानां भाषापर्याप्ताना जीवेषु उदयस्थान भंगयत्राणि ४ सुस्व० दुःस्व० य०अय० ४ ३० उद्योतसहिता २९ स्वरात् प्राक् २ यशोऽयशोभ्यां उच्छ्वासपर्यातानां ३१ उद्योतसहिता ३० ४। य०अय०, स्वराभ्यां । भाषापर्याप्तानां २२ एवं २२ द्वीन्द्रियाणां २२ त्रीन्द्रियाणां २२ चतुरिन्द्रिणां च-६६विकलेन्द्रियाणां भंगाः प्राकृततिर्यक्पञ्चेन्द्रिणामुदयस्थानेषु भङ्गाः (४९०६). मनुष्याणां , (२६०२) (मनुष्यस्योद्यतसत्का भङ्गा न भवन्ति) २१ गति०२-पंचे०-०-बा० पर्यापपर्यासुभ०९ सुभदुर्भ० आदे०अनाथ य०अय० गत्यन्तराले तिनराणां आदे०-यश:-अयशः०१२वोदया: दुर्भगानादेयायशोभिः १ अपर्याप्तस्य (मर्ता वा सुभगादेव-दुर्भगाना० य०अय० पर्याप्तस्य तरेण ५) दुर्भगानादेयायशोभिः १-अपर्याप्तस्य -८पर्याप्त० गत्यन्तराले तिनराणां २ २ ॥१२८॥

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