________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
चंगदेव
चंगदेव आसन पर से उठकर पाहिनी की उँगली थामकर खड़ा रहा। उसकी नज़र तो आचार्यदेव पर ही टिकी हुई थी। आचार्यदेव भी चंगदेव के चेहरे की तेजस्वी रेखाओं को पढ़ रहे थे। पाहिनी नीची निगाह किये दानों हाथ जोड़कर खड़ी थी।
आचार्यदेव ने कहा : ‘पाहिनी, सूर्य और चन्द्र को घर में रखा जा सकता है क्या? और यदि सूर्य-चन्द्र घर में रहे तो फिर वे दुनिया को रोशनी दे सकेंगे क्या? तेरा पुत्र सूर्य जैसा तेजस्वी और चन्द्र जैसा सौम्य है। उसका जन्म घर में रहने के लिए नहीं वरन् जिनशासन के गगन में चमकने-दमकने के लिए हुआ है। यह सितारा बनकर तब तक चमकता रहेगा जब तक जिनशासन रहेगा...। इसलिए इसका लगाव तुझे छोड़ना होगा, पाहिनी! इसका मोह कम करना होगा।'
पाहिनी ने कहा : 'आपकी बात मैं मानती हूँ... | मैं तो खुश हूँ...। मेरा लाल यदि जिनशासन की शान हो इससे बढ़कर मेरे लिए और कौन सी खुशी हो सकती है? पर गुरुदेव, आप चंगदेव के पिता से चंगदेव के लिए माँग करें।' 'ठीक है, मैं उनके साथ बात करूंगा।' पाहिनी चंगदेव को लेकर घर पर आई। आचार्यदेव परमात्मा की स्तवना में लीन हो गये। कुछ दिन बीत गये। एक दिन आचार्यदेव ने चाचग सेठ को उपाश्रय में बुलाया। उनसे कहा : 'चाचग, तुम्हारा बेटा चंगदेव भाग्यशाली है... उसका भविष्य काफी उज्ज्वल है।' 'गुरुदेव, आपका कथन सच हो!' चाचग ने हर्षान्वित होकर कहा।
'महानुभाव, कथन को सच करने के लिए... तुम्हें चंगदेव का मोह उतारना होगा...।'
'यानी गुरुदेव?' 'चंगदेव को मुझे सौंपना होगा । वह हीरा है...मुझे उसे तराशना होगा। वह मेरे पास रहेगा।'
For Private And Personal Use Only