Book Title: Jivvichar
Author(s): Shantisuri, Vrajlal Pandit
Publisher: Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal

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Page 7
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उ.-जो जीव, सर्दी-गरमी से अपना बचाव करने के लिये चल-फिर सके, वह त्रस । प्र०-स्थावर किसको कहते हैं ? उ०-जो जीव सर्दी-गरमी से अपना बचाव करने के लिये चल-फिर न सके, वह स्थावर। प्र०-पृथ्वीकाय आदि का क्या अर्थ है ? उ.-कायका अर्थ है शरीर जिस जीव का शरीर पृथ्वी का हो, वह पृथ्वीकाय; जिसका शरीर जलका हो, वह जलकाय; जिसका अग्निका हो, वह अग्निकाया जिसका वायुकाहो, वह वायुकाय;जिसका वनस्पति का हो, वह वनस्पतिकाय। "दो गाथाओं से पृथ्वीकाय के भेद कहते हैं" फलिहमणि-रयण-विद्दुम-, हिंगुल-हरियाल-मणसिल-रासिंदा । कणगाइ-ध उसेढी, वनिअ-अरणेट्टय-पलेवा ॥३॥ अब्भय-तूरी-ऊसं, मट्टी-पाहाण-जाइओ णेगा। सोवीरंजण-लूणा,--इ पुढवि-भेआइ इच्चाई ॥४॥ __ (फलिह) स्फटिक, (मणि) मणि-चन्द्रकान्त श्रादि (रयण ) रन-वजकर्केतन आदि, (विद्दुम) मूंगा, For Private And Personal Use Only

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