Book Title: Jivvichar
Author(s): Shantisuri, Vrajlal Pandit
Publisher: Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal

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Page 24
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ २१ ] " अब स्थलचर जीवों के भेद कहते हैं " चउपय-उरपरिसप्पा, भुयपरिसप्पा य थलयरा तिविहा । गो-सप्प-नउल-पमुहा, बोधव्वा ते समासेणं ॥२१॥ (थलयरा) स्थलचर जीव (तिविहा) त्रिविध अर्थात् तीन प्रकार के हैं; (च उपय) चतुष्पद-चार पैर से चलने वाले, (उरपरिसप्पा) उरःपरिसर्प-छातीसेपेट से चलने वाले (य) और (भुयपरिसप्पा) भुजपरिसर्प-भुजाओं से चलने वाले,(गो)गाय, (सप्प) साँप, (नउल) नकुल-न्योला, (पमुहा) प्रमुख-श्रादि (ते) वे (समासेणं) समास से-संक्षेप से (बोधव्वा) जानने ॥२१॥ भावार्थ-जमीन पर चलने वाले जीव-जिनको स्थलचर कहते हैं-तीन प्रकार के होते हैं, (१)चार पैर से चलने वाले गाय, भैस आदि; (२) पेट से चलने वाले सर्पादि, (३) भुजाओं से चलने वाले नकुल-न्योला अदि । क्रमशःइन तीनों को चतुष्पद, उरःपरिसर्प और भुजपरिसर्प कहते हैं। For Private And Personal Use Only

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