Book Title: Jivvichar
Author(s): Shantisuri, Vrajlal Pandit
Publisher: Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal

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Page 29
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ २६ ] (भवणाहिबई)भवनाधिपति दवता, (दसहा) दशधा-दस प्रकारके हैं, (वाणमंतरा)वानमन्तर देवता, (अट्ठविहा) अष्टविधा-पाठ प्रकारके, (हँति) होते हैं, (जोइसिया)ज्योतिष्का-ज्योतिष्क देवता,(पँचविहा) पञ्चविधा-पांच प्रकार के हैं और (माणिया देवा) वैमानिक देवता, (दविहा) दो प्रकार के हैं ॥२४॥ भावार्थ-भवनपति देवताओंके दस भेद हैं;-१ - सुरकुमार, २ नागकुमार, ३ सुपर्णकुमार, ४विद्युत्कुमार, ५ अग्निकुमार, ६द्वीपकुमार,७ उदधिकुमार, ८ दिक्कुमार, ६ वायुकुमार, और १० स्तनितकुमार। वानमन्तर-चाणव्यन्तर-देवताओंके आठ भेद हैं:-१ पिशाच, २ भूत, ३ यक्ष,४ राक्षस, ५ किन्नर, ६ किंपुरुष, ७ महोरंग, और ८ गान्धर्व वाणव्यन्तर (वानमन्तर)के ये भी पाठ भेद हैं:-१अणपनी २पणपन्नी, ३ इसोवादो, ४ भतवादी, ५कन्दित, महा. कन्दित, ७ कोहण्ड और ८ पतङ्ग, ज्योतिष्क देवताओंके पांच भेद हैं:-१ चंद्र, २ सूर्य, ३ ग्रह, ४ नक्षत्र, और ५ तारा. वैमानिक देवता दो प्रकार के है:-१ कल्पोपपन्न, और २ कल्पातीत. कल्प अर्थात् आचार-तीर्थङ्करोंके पांच कल्याणकमें आना-जाना, उसकी रक्षा करने वाले देवता, 'कल्पोपपन्न' कह. लाते हैं. उक्त प्राचारके पालन करनेका अधिकार जिन्हें नहीं है, वे देव, 'कल्पातीत' कहलाते हैं.कल्पो. For Private And Personal Use Only

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