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[ ४२ ] भावार्थ-देव और नरकवासी जीव, अधिक से अधिक, तेतीस सागरोपम तक जीते हैं और चतु. पद तिर्यञ्च तथा मनुष्य तीन पल्योपम तक, ये तिर्यश्च तथा मनुष्य देवकुर आदि क्षेत्रों के सम. झना चाहिये. देव तथा नारक जीवों की जघन्य श्रायु-कम से कम आयु-दस हजार वर्ष की है; मनुष्य तथा तिर्यश्च जीवों की जघन्य अाय, अन्तमुहूर्त की है। जलयर-उरभुयगाण,परमाऊ होइ पुव्वको डीऊ पक्खीणं पुण भणियो,असंखभागो अ पलियस्स
(जलयर-उरभुयगाणं) जलचर, उर परिस और भुजपरिसर्प जीवों की (परमाऊ) उत्कृष्ट आयु (पुव्वकोडीऊ) एक करोड़ पूर्व है, (पक्खीणं पुण) पक्षियों की आयु तो (पलियस्स)पल्योपमका (असंखभागो) असंख्यातवाँ भाग जितनी ( भणियो) कही है ॥३७॥
भावार्थ-गर्भज और सम्मूच्छिम ऐसे दो प्रकार के जलचर जीवों की तथा गर्भज, उर परिसर्प और भुजपरिसर्प जीवों की उत्कृष्ट अायु एक करोड़ पूर्व है; गर्भज पक्षियोंको आयु पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग जितनी है। सव्वे सुहुमा साहा,
रणा य संमुच्छिमा मणुस्सा य ।
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