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[ ५३ ] गहणंमि) योनियों से क्लेशरूप (भीसणे) भयकर (इत्थ ) इस संसार में (चिरं) बहुत काल तक (भमिया) भ्रमण कर चुके और (भमिहिंति) भ्रमण करेंगे ॥ ४६॥
भावार्थ-चौरासी लाख योनियों के कारण दुःखदायक तथा भयङ्कर इस संसार में, जिनेन्द्र भगवान् के बतलाये हुए मार्ग को न पाये हुए जीव, अनादि कालसे जन्ममरण के चक्कर में फंसे. हुए हैं तथा अनन्त काल तक फंसे रहेंगे। "अब ग्रन्थ कार अपना नाम सूचित करते हुए
धम्मोपदेश देते हैं, ता संपइ संपत्ते, मणुअत्ते दुल्लहे वि सम्मत्ते। सिरिसंतिसूरिसिठे,करेहभो उज्जमं धम्मे॥५०॥
(ता) इसलिये (संपद) इस समय (दुल्लहे) दुर्लभ ( मणुअत्ते ) मनुजत्व-मनुष्य जन्म और ( सम्मत्ते) सम्यक्त्व ( संपत्ते ) प्राप्त हुमा है तो ( सिठे ) शिष्ट-सज्जन पुरुषों से सेवित ऐसे (धम्मे ) धर्म में ( भो) अय प्राणियो! (उज्जम) उद्यम-पुरुषार्थ ( करेह ) करो, ऐसा ( सिरिसंतिसूरि) श्री शान्तिसूरि उपदेश देते हैं ॥ ५० ॥ ___ भावार्थ-जब कि संसार भयङ्कर है और चौरासी लाख योनियों के कारण उससे पार
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