Book Title: Jivvichar
Author(s): Shantisuri, Vrajlal Pandit
Publisher: Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 54
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ ५९ ] चउरो चउरो नारय, - सुरेस मणुआण चउदस हवंति । सपिंडिया य सव्वे, चुलसी लक्खाउ जोणीणं ॥ ४७ ॥ ( नारय सुरेसु ) नारक और देवों की ( चउरो चउरो ) चार चार लाख योनियां हैं; ( मणुण) मनुष्यां की ( चउदस ) चौदह लाख ( हवंति ) ( सव्वे ) सब ( संपिंडिया ) इकट्ठी की जांयमिलाई जांय तो (जोणी ) योनियों की संख्या (चुलसी लक्खाउ) चौरासी लाख होती हैं ॥४७॥ भावार्थ - नारक जीवों की चार लाख, देवों की चार लाख और मनुष्यों की चौदह लाख योनियां हैं। योनियों की सब संख्या मिलाने पर चौरासी लाख होती है । "अब सिद्ध जीवों के विषय में कहते हैं। ין सिद्धारा नत्थि देहो, न आउ कम्मं न पाण जोगीओ । साइ- अणंता तेसिं, ठिई जिखिँदागमे भणिया ॥ ४८ ॥ For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 52 53 54 55 56 57 58