Book Title: Jivvichar
Author(s): Shantisuri, Vrajlal Pandit
Publisher: Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal

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Page 46
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ ४३ ] उक्कोस जहन्न, अंतमुहुत्तं चिय जियंति ॥ ३८ ॥ (सब्बे) सम्पूर्ण (सुहुमा) पृथ्वीकाय आदि सूक्ष्म (घ) और (साहारणा) साधारण वनस्पतिकाय ( प ) और ( संमुच्छिमा मस्सा) संमूच्छिम मनुष्य (उक्कोस जहन्नेणं) उत्कृष्ट और जघन्य से (अंतमुहृत्तं चिय) अन्तर्मुहूर्त ही (जियंति) जीते हैं ||३८|| भावार्थ —— सूक्ष्म पृथ्वीकाय आदि जीव, सूक्ष्म और बादर साधारण वनस्पतिकाय के जीव और सम्मूर्छिम मनुष्य, उत्कर्ष से और जघन्य से सिर्फ़ अन्तर्मुहूर्त तक जीते हैं। प्रश्न - पल्योपम किसको कहते हैं ? उ०- असंख्य वर्षों का एक पल्योपम होता है । प्र०-- सागरोपम किसे कहते हैं ? उ०- - दस कोड़ा कोड़ी पल्योपम का एक सागरोपम होता है । प्र० -- पूर्व किसको कहते हैं ? उ०--सत्तर लाख, छप्पन हज़ार करोड़ वर्षों का एक पूर्व होता है । ओगाहणाउमाण, एवं संखेवओ समक्खायं । जे पुण इत्थ विसेसा, विसेस सुत्ताउ ते नेया ॥ ३९ ॥ For Private And Personal Use Only

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