Book Title: Jivvichar
Author(s): Shantisuri, Vrajlal Pandit
Publisher: Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal

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Page 27
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 5.२४] अकर्मभूमि कहते हैं, वहां पैदा होने वाले मनुष्य अकर्मभमिज कहलाते हैं; अकर्मभूमियों की संख्या तीस है । वह इस प्रकार:-ढाई द्वीप में पाँच मेरु हैं, प्रत्येक मेरु के दोनों तरफ़ अर्थात् उत्तर तथा दक्षिण की ओर १ हैमवंत,२ ऐरण्यवंत,३ हरिवर्ष,४ रम्यक ५ देवकुरु और ६ उत्तरकुरु, इन नामों की छह छह भूमियां हैं, इन छह भूमियों को पांच मेरुओं से गुणने पर तीस संख्या होती है। अन्तर्वीप में पैदा होने वाले मनुष्य अन्तीपनिवासी कहलाते हैं, अन्तीपों की संख्या छप्पन है वह इस प्रकारःभरतक्षेत्र से उत्तर दिशा में हिमवान् नामक पर्वत है, वह पूर्व दिशा में तथा पश्चिम दिशा में लवणसमुद्र तक लम्बा है, इस की पूर्व तथा पश्चिम में दो दो दंष्टाकार भूमियां समुद्र के भीतर हैं, इस तरह पूर्व तथा पश्चिम की चार दंष्ट्रायें हुई। इसी प्रकार ऐरावतक्षेत्र से उत्तर शिखरी नामक पर्वत है, वह भी पूर्व तथा पश्चिम में समुद्र तक लम्बा है और दोनों दिशाओं में दो दो दंष्ट्राकार भूमियां समुद्र के अन्दर घुसी हैं, दोनों की आठ दंष्ट्रायें हुई,हरएक दंष्ट्रा में सात सात अन्तर्वीप हैं, सात को आठ के गुणने पर छप्पन संख्या हुई। विशेष-कर्मभूमि,अकर्मभूमि और अन्तीप,ये सब ढाई द्वीपमें हैं। जम्बूद्वीप,धातकीखण्ड और पुष्करवर. For Private And Personal Use Only

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