Book Title: Jivvichar
Author(s): Shantisuri, Vrajlal Pandit
Publisher: Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 37
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ 38 ] किन जीवों को कितनी कितनी योनियां हैं इस विषय की गिनती ; ये बातें आगे कही जायँगी । " पहले, शरीर प्रमाण कहते हैं ।" । अंगुलअसंखभागो, सरीरमेोगंदियाण सव्वेसिं । जोयणसहस्समहियं, नवरं पत्तेरुक्खाणं ॥२७॥ (सव्वेसिं) सम्पूर्ण (ऐगिंदियाण) एकेन्द्रियों का ( सरीरं ) शरीर (अंगुल असंभागो) उँगली के असंख्यातवें भाग जितना है, (नवरं ) लेकिन (पत्तेय - रुक्खाएं) प्रत्येक वनस्पतियों का शरीर, (जोयणसहस्समहियं) हज़ार योजन से कुछ अधिक है ||२७|| भावार्थ- सूक्ष्म तथा बादर पृथ्वीकाय आदि एकेन्द्रिय जीवों का शरीर प्रमाण, उँगली के असंख्यातवें भाग जितना है, लेकिन प्रत्येक वनस्पतिकाय के जीवों का शरीर प्रमाण, हज़ार योजन से कुछ अधिक है; यह प्रमाण समुद्र के पद्मनाल का तथा ढाई द्वीप से बाहर की लताओं का है । "अब द्वीन्द्रिय आदि विकलेन्द्रिय जीवों का शरीर - प्रमाण कहते हैं " बारस जोयण तिन्ने, व गाउच्चा जोयणं च अणुकमसो । w For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58