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किन जीवों को कितनी कितनी योनियां हैं इस विषय की गिनती ; ये बातें आगे कही जायँगी ।
" पहले, शरीर प्रमाण कहते हैं ।"
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अंगुलअसंखभागो, सरीरमेोगंदियाण सव्वेसिं । जोयणसहस्समहियं, नवरं पत्तेरुक्खाणं ॥२७॥
(सव्वेसिं) सम्पूर्ण (ऐगिंदियाण) एकेन्द्रियों का ( सरीरं ) शरीर (अंगुल असंभागो) उँगली के असंख्यातवें भाग जितना है, (नवरं ) लेकिन (पत्तेय - रुक्खाएं) प्रत्येक वनस्पतियों का शरीर, (जोयणसहस्समहियं) हज़ार योजन से कुछ अधिक है ||२७||
भावार्थ- सूक्ष्म तथा बादर पृथ्वीकाय आदि एकेन्द्रिय जीवों का शरीर प्रमाण, उँगली के असंख्यातवें भाग जितना है, लेकिन प्रत्येक वनस्पतिकाय के जीवों का शरीर प्रमाण, हज़ार योजन से कुछ अधिक है; यह प्रमाण समुद्र के पद्मनाल का तथा ढाई द्वीप से बाहर की लताओं का है ।
"अब द्वीन्द्रिय आदि विकलेन्द्रिय जीवों का शरीर - प्रमाण कहते हैं "
बारस जोयण तिन्ने,
व गाउच्चा जोयणं च अणुकमसो ।
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