Book Title: Jivvichar
Author(s): Shantisuri, Vrajlal Pandit
Publisher: Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal

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Page 13
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [१०] "दो गाथाओं से साधारण - वनस्पतिकाय के भेद कहते हैं ।' कंदा-अंकुर - किसलय, -- परणगा-सेवाल - भूमि फोडा अ । अल्लय-तिय- गज्जर-मो, -- त्वत्थुला थेग - पल्लंका ॥ ९ ॥ कोमलफलं च सव्वं, गूढसिराई सिणाइपत्ताइं । थोहरि - कुंआरि-गुग्गुलि, गलोय - पमुहाइ - छिन्नरुहा ॥ १० ॥ (कंदा) कंद - आलू, सूरन, मूली का कंद आदि (अंकुर) अंकुर, (किसलय) नये कोमल पत्ते ( पगा सेवाल) पाँच रंगकी फुल्लि जो कि वासी अन्न में पैदा होती है, और सिवार (भूमि फोडा) भूमिस्फोट - वर्षा ऋतु छत्रके आकार की वनस्पति होती है, (अल्लयतिप) अद्रक, हल्दी और कर्चूक, ( गज्जर ) गाजर, (मोत्थ) नागरमोथा, (बन्धुला ) बथुआ, ( थेग) एक किस्म का कन्द, (पल्लंका) पालखी - शाकविशेष ॥ ६ ॥ (कामलफलं च सव्वं) सब तरह के कोमल फल- जिन में बीज पैदा न हुये हों, (गूढ़ सिराई सिणांह पत्ताइं ) जिनकी नसें प्रकट न हुई हों, वे, तथा सन यादिके For Private And Personal Use Only

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