Book Title: Jivvichar
Author(s): Shantisuri, Vrajlal Pandit
Publisher: Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal

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Page 16
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ १३ ] तन्तु न हो; जिमको काटकर बो देने से वह ऊगे;" जिसमें उक्त लक्षण न हो, उस वनस्पतिको 'प्रत्येकवनस्पति समझना चाहिये। "अब प्रत्येक-वनस्पतिकाय के लक्षण तथा भेद कहते हैं ।" एगसरीरे एगो, जीवो जेसि तु ते य पत्तेया। फल-फूल-छल्लि-कट्टा, मूलगपत्ताणि बीयाणि ॥ १३ ॥ (जेसिं) जिनके (एगसरीरे) एक शरीरमें (एगो जीवो) एक जीव हो (ते तु) वे तो (पत्तेया) प्रत्येक वनस्पतिकाय हैं; उनके सातभेद हैं (फल, फूल, छल्लि कट्ठा) फल, पुष्प, छाल, काष्ठ, ( मूलग ) मलियाँ, (पत्ताणि) पत्ते, और (बीयाणि) बीज ॥१३॥ ___भावार्थ-जिन वनस्पतियों के एक शरीर में एक जीव हो अर्थात् एक शरीरका एक ही जीव स्वामी हो, उन वनस्पतियोंको प्रत्येक-वनस्पतिकाय समझना चाहिये प्रत्येक वनस्पतिकाय जीवके सात भेद हैं:-फल, पुष्प,छाल, काष्ट,मलियां, पत्ते और बीज । For Private And Personal Use Only

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