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जिनवरस्य नयचक्रम्
मंगलाचरण
नित्य
जो एक शुद्ध विकारवजित,
__ अचल परम पदार्थ है। जो एक ज्ञायकमाव निर्मल,
नित्य निज परमार्थ है। जिसके दरश व जानने,
__ का नाम दर्शन ज्ञान है। हो नमन उस परमार्थ को,
जिसमें चरण ही ध्यान है ॥१॥
निज आत्मा को जानकर,
पहिचानकर जमकर अमी। जो बन गये परमात्मा,
पर्याय में मी वे समी ॥ वे साध्य हैं, आराध्य हैं,
आराधना के सार हैं। हो नमन उन जिनदेव को,
जो मवजलधि के पार हैं ॥२॥