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व्यवहारनय कुछ प्रश्नोत्तर ]
[ १०६ (१) “निरुपाधिगुणगुरिणनोर्भेद विषयोऽनुपचरितसद्भूतव्यवहारो यथा- जीवस्य केवलज्ञानादयो गुरणाः।'
निरुपाधि गुण-गुणी मे भेद को विषय करनेवाला अनुपचरितसद्भूतव्यवहारनय है । जैसे - जीव के केवलज्ञानादिगुण है।"
(२) “शुद्धसमूतव्यवहारो यथा - शुद्धगुण-शुद्धगुणिनोः शुद्धपर्यायशुद्धपर्यायिणो भेदकथनम् ।।
शुद्धगुण व शुद्धगुणी मे अथवा शुद्धपर्याय व शुद्धपर्यायी मे भेद का कथन करना शुद्धसद्भूतव्यवहारनय है।"
(३) “शुद्धसद्भूतव्यवहारेण केवलज्ञानादिशुद्धगुणानामाधारभूतत्वात् कार्यशुद्धजीवः ।
शुद्धसद्भूतव्यवहारनय में केवलज्ञानादि शुद्धगुणो का आधार होने के कारण कार्यशुद्धजीव है।"
(४) "परमाणपर्यायः पुद्गलस्य शुद्धपर्याय परमपारिणामिकभावलक्षणः वस्तुगतषट्प्रकारहानिवृद्धिरूप. अतिसूक्ष्मः अर्थपर्यायात्मकः सादिसनिधनोऽपि परद्रव्यनिरपेक्षत्वाच्छुद्धसद्भूतव्यवहारनयात्मकः ।।
परमाणुपर्याय पुद्गल की शुद्धपर्याय है, जो कि परमपारिमाणिकभावस्वरूप है, वस्तु मे होनेवाली पटगुणी हानि-वृद्धिरूप है, अतिसूक्ष्म है, अर्थपर्यायात्मक है, आर मादिसान्त होने पर भी परद्रव्य से निरपेक्ष होने के कारण शुद्धसद्भूतव्यवहारनयात्मक है।"
(५) "केवलज्ञानदर्शनं प्रति शुद्धसभूतशब्दवाच्योऽनुपचरितसद्भूतव्यवहारः।
यहॉ जीव का लक्षण कहते समय केवलज्ञान व केवलदर्शन के प्रति शुद्धसद्भूत शब्द से वाच्य अनुपचरितसद्भूतव्यवहारनय है।"
(६) "शुद्धसमूतव्यवहारनयेन शुद्धस्पर्शरसगंधवानामाधारभूतपुद्गलपरमाणुवत् केवलज्ञानाविशुद्धगुरणानामाधारभूतम् ।। 'पालापपद्धति, पृष्ठ २२८ २ वही, पृष्ठ २१७ 3 नियमसार, गाथा ६ की तात्पर्यवृत्ति टीका • नियमसार, गाथा २८ की तात्पर्यवृत्ति टीका ५ बृहद्रव्यसग्रह, गाथा ६ की सस्कृत टीका ' प्रवचनसार की जयसेनाचार्यकृत तात्पर्यवृत्ति टीका का परिशिष्ट