Book Title: Jinavarasya Nayachakram
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 166
________________ १५८ ] [ जिनवरस्य नयचक्रम् उक्त दोनों ही शैलियाँ माध्यात्मिक शैलियाँ हैं और दोनों ही प्रकार के प्रयोग जिनागम में कहीं भी देखे जा सकते हैं । अतः उन्हें किसी व्यक्तिविशेष या ग्रंथविशेष के नाम से संबोधित करना उचित प्रतीत न होने पर भी काम चलाने के लिए कुछ न कुछ नाम देना तो आवश्यक है ही। अन्य समस्त मागम और परमागम में तो प्रायः इनके प्रयोग ही • पाये जाते हैं, अतः पाठकों की दृष्टि में उतना भेद स्पष्टरूप से भासित नहीं हो पाता, जितना उक्त ग्रंथों के अध्ययन से भासित होता है। इन ग्रंथों में नयों के स्वरूप एवं विषयवस्तु की दृष्टि से सीधा प्रतिपादन है। अतः यह भेद एकदम स्पष्ट हो जाता है। फिर पंचाध्यायीकार तो भिन्नता संबंधी कथनों को स्वयं उठा-उठाकर अपने कथन के पक्ष में तर्क प्रस्तुत करते हैं । अतः भिन्नता उभरकर सामने आ जाती है। उक्त ग्रंथों के नाम पर उक्त शैलियों के नामकरण का एक कारण यह भी है। अब हम सुविधा के लिये नयचक्रादि ग्रन्थों में प्राप्त शैली को प्रथम शैली और पंचाध्यायी में प्राप्त शैली को द्वितीयशैली के नाम से भी अभिहित करेंगे और प्रश्नोत्तरों के माध्यम से इस विषय को स्पष्ट करने का यथासंभव प्रयास करेंगे। कथन अनेक : प्रयोजन एक __कथन तो नानाप्रकार के हों और एक ही प्रयोजन का पोषण करें तो है है कोई दोष नहीं, परन्तु कही किसी प्रयोजन का और कहीं किसी प्रयोजन का है है पोषण करें तो दोष ही है। अब जिनमत में तो एक रागादि मिटाने का ? है प्रयोजन है; इसलिए कहीं बहुत रागादि छुड़ाकर थोड़े रागादि कराने के है प्रयोजन का पोषण किया है, कहीं सर्व रागादि मिटाने के प्रयोजन का पोषण है किया है। परन्तु रागादि बढ़ाने का प्रयोजन कहीं नहीं है, इसलिए जिनमत है है का सर्वकथन निर्दोष है । ............ है लोक में भी (कोई) एक प्रयोजन का पोषण करनेवाले नाना कथन है कहे, उसे प्रामाणिक कहा जाता है और अन्य-अन्य प्रयोजन का पोषण करने १ वाली बात करे, उसे बावला कहते हैं। तथा जिनमत में नानाप्रकार के कथन है १ हैं, सो भिन्न-भिन्न अपेक्षासहित है, वहाँ दोष नहीं है । - मोक्षमार्ग प्रकाशक, पृष्ठ ३०२-३०३ imawwanmamarwaroomwomawimwamimmaaamwaamanawww.

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