Book Title: Jinavarasya Nayachakram
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 169
________________ निश्चय-व्यवहार : विविध प्रयोग प्रश्नोत्तर ] [ १६१ द्वितीयशैली के पक्ष में जो तर्क जाता है, वह यह है कि देह और आत्मा के संयोग को देखकर उन्हें एक कहने या जानने से देह मे एकत्वबुद्धि हो जाने की संभावना है। अतः ऐसे कथनों को नयकथन कहना श्रेयस्कर नहीं है। रही त्रस-स्थावर जीवो की हिसा से बचने की और कुम्हार और सुनार के व्यवहार की बात, सो ये सब बाते तो लौकिक बाते है, इनका व्यवहार नयाभासों से ही चल जायगा। वस्तुस्थिति यह है अध्यात्म के जोर मे ही द्वितीयशैली मे सश्लेषसहित और संश्लेषरहित पदार्थो के संयोगादि को विषय बनानेवाले ज्ञान को नयाभास कहा गया है, क्योंकि उन्हे नय न मानने से जो व्यवहारापत्ति खड़ी हुई, उसके निराकरण के लिए उन्हे उपेक्षाबुद्धि से ही सही, पर नयाभासों की शरण मे जाना पड़ा। (२) प्रश्न :-क्या अध्यात्म के जोर मे भी ऐसे कथन किये जाते है? किये जा सकते है ? क्या परमागम मे इसप्रकार के कथन उपलब्ध होते है ? उत्तर :-हॉ, हॉ, क्यो नही, अवश्य प्राप्त होते है; एक नही, अनेको प्राप्त होते है । अध्यात्म के जोर मे राग को पुद्गल कहा ही जाता है। उक्त कथन के आधार पर कोई राग में रूप, रस, गंध और स्पर्श खोजने लगे तो निराश ही होगा । अथवा कोई ऐसा सोचने लगे कि पुद्गल दो प्रकार का होता होगा- एक रूप-रस-गंधादिवाला और दूसरा इनसे रहित तो वह सत्य को नही पा सकेगा। आत्मा से भिन्न बताने के लिए अध्यात्म के जोर में उसे पुद्गल कहा गया है, वस्तुतः वह पुद्गल नहीं है । है तो वह प्रात्मा की ही विकारी पर्याय । इसीप्रकार परजीवो को अजीव कहना, परद्रव्यो को अद्रव्य कहनाआदि कथन भी अध्यात्म के जोर मे किये गये कथन है। परमागम मे इसप्रकार के कथनों की कमी नही है। यदि आप परमागम का अध्ययन करेगे तो इसप्रकार के अनेको कथन प्रापको पद-पद पर प्राप्त होगे । जब अध्यात्म के जोर मे अन्य जीव को अजीव कहा जा सकता है, परद्रव्य को अद्रव्य कहा जा सकता है, राग को पुद्गल कहा जा सकता है; तो फिर देहादि संयोगों को विषय बनानेवाले नयों को नयाभास क्यों नही कहा जा सकता है ? अध्यात्म के उक्त कथनो का मर्म समझने के लिए आध्यात्मिक कथनों की विवक्षाओं को गहराई से समझना होगा, अन्यथा अध्यात्म पढ़कर भी आत्मा हाथ नहीं आवेगा।

Loading...

Page Navigation
1 ... 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191