Book Title: Jinavarasya Nayachakram
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 174
________________ १६६ ] [ जिनवरस्य नयचक्रम् के विभिन्न साधनों का भी ध्यान रखना होता है। हवाई मार्ग, रेलमार्ग, सड़कें आदि की अपेक्षा सभी बातें विस्तार से बतानी होती हैं, किन्तु रेलवे स्टेशन पर खड़े किसी व्यक्ति द्वारा किसी नगर विशेष को जाने का रास्ता पूछने पर उक्त नगर को जानेवाली उपयुक्त ट्रेन को बता देना ही अभीष्ट होता है । उसने सामने भारत की परिवहन व्यवस्था संबंधी मानचित्र खोलकर सभी स्थानों के सभी मागों को बताने का उपक्रम नहीं किया जाता है। उसीप्रकार आगम महासागर है । उसमें तो सम्पूर्ण विश्व व उसकी प्रत्येक इकाई का स्वरूप, संरचना, परिणमन व्यवस्था आदि सभी बातें विस्तार से समझाई जाती हैं। अध्यात्म आगम का ही एक अंग है, उसमें आत्मार्थी को मात्र परमार्थ प्रात्मा का स्वरूप ही समझाया जाता है, क्योंकि परमार्थ आत्मा के आश्रय से ही मुक्ति की प्राप्ति संभव है। जिसप्रकार मानचित्र में चित्रित परिवहन व्यवस्था में वह मार्ग भी निश्चितरूप से दिखाया गया होता है, जो मार्ग कोई विशेष पथिक जानना चाहता है, तथापि विभिन्न मार्गों की भीड़ में उसे खोज पाना साधारण नागरिक के लिए संभव नहीं होता । जब उसी मार्ग की मुख्यता से बने मानचित्र को देखते हैं तो वह मार्ग सर्वसाधारण को भी एकदम स्पष्ट हो जाता है। उसी मार्ग की मुख्यता से बना विशिष्ट मानचित्र यद्यपि परिवहन व्यवस्था संबंधी मानचित्र का ही अंग होता है, तथापि उसकी रचना कुछ इसप्रकार की होती है कि जिसमें उक्त मार्ग विशेष रूप से प्रकाशित होता है। उसीप्रकार आगम में भी आत्महितकारी कथन है, तथापि उसमें वस्तुस्वरूप का सभी कोणों से अति विस्तृत प्रतिपादन होने से उसमें से अपनी प्रयोजनभूत बात निकाल लेना सर्वसाधारण के वश की बात नहीं है। आगम के ही एक अंग अध्यात्म में प्रयोजनभूत बात की मुख्यता से ही कथन होने से उसकी बात आत्महित में विशेष हेतु बनती है । (५) प्रश्न :- तो क्या आगम में अप्रयोजनभूत बातों का भी कथन होता है ? उत्तर :- क्यों नहीं, अवश्य होता है। प्रयोजनभूत तो जीवादि तत्वार्थ ही हैं। शेष सब तो अप्रयोजनभूत ही है। प्रागम का उद्देश्य तो सम्पूर्ण वस्तुव्यवस्था का विवेचन करना होता है। यदि आगम के सम्पूर्ण कथन को प्रयोजनभूत मानेंगे तो फिर सम्पूर्ण पागम के जानकार

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