Book Title: Jinavarasya Nayachakram
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 172
________________ [ जिनवरस्य नयचक्रम् अध्यात्मनयों की चर्चा करते हुए नयचक्र, ' आलापपद्धति और; बृहद्रव्यसंग्रह ' में उनके छह भेद गिनाये गये हैं । उनमें दो प्रकार के निश्चयनय और चार प्रकार के व्यवहारनय । इन्हें निम्नलिखित चार्ट से अच्छी तरह समझा जा सकता है: १६४ ] निश्चयनय (१) शुद्धनिश्चयनय सद्भूतव्यवहारनय अध्यात्मनय -. (२) अशुद्ध निश्चयनय (३) शुद्धसदभूत (४) अशुद्धसदभूत ( ५ ) अनुपचरित - (६) उपचरित-प्रसद्भूतव्यवहारनय असद्भूतव्यवहारनय व्यवहारनय व्यवहारनय उक्त अध्यात्मनयों का स्वरूप सोदाहरण बृहद्रव्य संग्रह में इसप्रकार दिया गया है : व्यवहारनय - असभूतव्यवहारनय "प्रथ अध्यात्मभाषया नयलक्षणं कथ्यते । सर्वे जीवाः शुद्धबुद्धकस्वभावाः इति शुद्धनिश्चयनयलक्षणम् । रागादय एव जीवाः इत्यशुद्धनिश्चयनयलक्षणम् । गुरणगुणिनोरभेदोऽपि मेदोपचार इति सद्द्भूतव्यवहारलक्षरणम् । भेदेऽपि सत्यभेदोपचार इत्यसद्भूतव्यवहारलक्षरणम् । तथाहि जीवस्य केवलज्ञानादयो गुरणा इत्यनुपचरितसंज्ञशुद्धसद्द्भूतव्यवहारलक्षणम् । जीवस्य मतिज्ञानादयो विभावगुरणा इत्युपचरित संज्ञाशुद्धसद्भूतव्यवहारलक्षरणम् । 'मदीयो देहमित्यादि' संश्लेषसंबन्धसहित पदार्थः पुनरनुपचरितसंज्ञासद्द्भूतव्यवहारलक्षरणम् । यत्र तु संश्लेषसंबन्धो नास्ति तत्र 'मदीयः पुत्र इत्यादि' उपचरिताभिधानासद् - भूतव्यवहारलक्षणमिति नयचक्रमूलभूतं संक्षेपेरण नयषट्कं ज्ञातव्यमिति । * ' देवसेनाचार्यकृत नयचक्र, पृष्ठ २५-२६ २ प्रालापपद्धति, पृष्ठ २२८ 3 बृहद्द्रव्यसंग्रह, गाथा ३ की टीका ४ वही

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