Book Title: Jinavarasya Nayachakram
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 139
________________ व्यवहारनय : कुछ प्रश्नोत्तर ] [ १३१ त्रिकालीसामान्यभाव होने के कारण शुद्धता व अशुद्धता से निरपेक्ष शुद्ध ही होता है, जैसे ज्ञानगुणसामान्य । परन्तु पर्याय शुद्ध व अशुद्ध - दोनों प्रकार की होती है । इन दोनों मे से यहाँ शुद्धसद्भूतव्यवहार के द्वारा केवल शुद्धपर्याय का ही ग्रहरण किया जाता है । अशुद्धपर्याय का ग्रहण करना अशुद्धसद्भूतव्यवहार का काम है । शुद्धपर्याय भी दो प्रकार की है - सामान्य व विशेष । प्रतिक्षणवर्ती षट्गुणी हानि - वृद्धिरूप सूक्ष्मअर्थपर्याय तो सामान्यशुद्धपर्याय है और क्षायिकभाव विशेषशुद्धपर्याय है, जैसे केवलज्ञान । सामान्यद्रव्य में तो सामान्यगुण व गुरणी का अथवा सामान्यशुद्धपर्याय व पर्यायी का अथवा विशेषशुद्धपर्याय व पर्यायी का - ये तीनों ही भेद देखे जाने सभव है । परन्तु शुद्धद्रव्य मे अर्थात् शुद्धद्रव्यपर्याय मे केवल विशेषशुद्धपर्याय व पर्यायी का ही भेद देखा जा सकता है, क्योकि शुद्धद्रव्यपर्याय में त्रिकालीसामान्यद्रव्य के ग्रथवा सामान्यपर्याय के दर्शन असभव है । 'जीव ज्ञानवान है या पद्गुरणी हानि-वृद्धिरूप स्वाभाविक सामान्यपर्यायवाला है' – ऐसा कहना द्रव्यसामान्य मे गुण- गग्गी व पर्याय- पर्यायी का भेदकथन है । - " 'जीव केवलज्ञानदर्शनवाला है या वोनगगतावाला है। यह द्रव्यसामान्य मे शुद्धगुग्गा शुद्धगुणी व शुद्धपर्याय शुद्धपर्यायी का भेदकथन है । 'सिद्धभगवान केवलज्ञान व केवलदर्शनवाले है या वीतरागतावाले हे ।' यह शुद्धद्रव्य या शुद्धद्रव्यपर्यायी मे शुद्धगुरण - शुद्धगुणी व शुद्धपर्यायशुद्धपर्यायी का भेदकथन है । ये सभी शुद्धमद्भूतव्यवहारनय के उदाहरण है । इसे ग्रनुपचरितसद्भूतव्यवहारनय भी कहते है, क्योकि गुरणसामान्य तो परसंयोग से रहित होने के कारण तथा क्षायिकभाव संयोग के प्रभावपूर्वक होने के कारण अथवा स्वभाव के अनुरूप होने के कारण अनुपचरित कहे जाने युक्त है ।" शुद्धमद्भूतव्यवहारनयवत् ही अशुद्धमद्भूतव्यवहारनय भी समझना । अन्तर केवल इतना है कि यहाँ सामान्य गुरण व पर्यायरूप स्वभावभावो की अपेक्षा भेद डाला जाना संभव नही है, क्योंकि वे अशुद्ध नही होते । १ नयदर्परण, पृष्ठ ६६८-६६६

Loading...

Page Navigation
1 ... 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191