Book Title: Jinavarasya Nayachakram
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 115
________________ व्यवहारनय : भेद-प्रभेद ] [ १०७ पालापपद्धति में कहा है :"अन्यत्र प्रसिद्धस्य धर्मस्यान्यत्र समारोपणमसमूतव्यवहारः।' अन्यत्र (अन्य द्रव्य में) प्रसिद्ध धर्म का अन्यत्र (अन्य द्रव्य में) आरोप करने को असद्भूतव्यवहारनय कहते है।" __इसे असत्य प्रारोप करने के कारण असद्भुत ; भिन्न द्रव्यो मे सम्बन्ध जोड़ने के कारण व्यवहार; और संयोग का ज्ञान करानेवाले मम्यक्-श्रुतज्ञान का अंश होने से नय कहा जाता है।। इसप्रकार इसका नाम 'अमद्भूतव्यवहारनय' सार्थक है। इस मन्दर्भ मे क्षल्लक श्री जैनन्द्रवर्णी के विचार दृष्टव्य है : "व्यवहारनय के दो प्रमुख लक्षणो पर से यह बात स्वतः स्पष्ट हो जाती है कि व्यवहारनय दो प्रकार का है - एक तो अखण्डवस्तु में भेद डालकर एक को अनेक भेदोंरूप देखनेवाला; और दूसग अनेक वस्तुओं में परस्पर एकत्व देखनेवाला । पहले प्रकार का व्यवहार मद्भूत कहलाता है, क्योंकि वस्तु के गुग्ग-पर्याय मचमुच ही उस वस्तु के अंग है। दूमरे प्रकार का व्यवहार असद्भूत कहलाता है, क्योंकि अनेक वस्तुओं की एकता सिद्धान्तविरुद्ध व अमत्य है।"२ सद्भूत और असद्भूतव्यवहारनय की विपयवस्तु स्पष्ट करते हुए आलापपद्धतिकार लिखते है . ___ "गुरगगुरिणनोः पर्यायपर्यायियोः स्वभावस्वभाविनोः कारककारकिरणोर्भेदः सद्भूतव्यवहारस्यार्थः । द्रव्ये द्रव्योपचार , पर्याये पर्यायोपचारः, गुरणे गुरगोपचारः, द्रव्ये गुरणोपचारः, द्रव्ये पर्यायोपचारः, गुरणे द्रव्योपचारः, गुणे पर्यायोपचारः, पर्याये द्रव्योपचारः, पर्याये गुणोपचारः इति नवविधोऽसद्भूतव्यवहारस्यार्थो द्रष्टव्यः । गुण-गुणी में, पर्याय-पर्यायी में, स्वभाव-स्वभाववान मे और कारककारकवान में भेद करना अर्थात् वस्तुत. जो अभिन्न है, उनमें भेदव्यवहार करना मद्भूतव्यवहारनय का अर्थ (विषय) है। एक द्रव्य मे दूसरे द्रव्य का उपचार, एक पर्याय मे दूसरी पर्याय का उपचार, एक गुण में दूसरे गुरण का उपचार; द्रव्य मे गुण का उपचार, द्रव्य में पर्याय का उपचार; ' पालापपद्धति, पृष्ठ २२७ . नयदर्पण, पृष्ठ ६६५ • पालापपद्धति, पृष्ठ २२७

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