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( 438 ) सं० १५३३ वर्षे माह सुदि १३ सोमदिने बघेरवाल ज्ञाती राय भंडारी गोत्रे सा. सीहा मा. पूरी पुत्र ठाकुरसी भा. मह पुत्र आका आत्मपूजार्थं श्री आदिनाथ विवं करापितं श्रोसर्व सूरिभिः शुभं भवतु ॥
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सं० १८७७ वै० सु० १५ श्रीपावविध प्र. जिन हर्ष सूरिना कारित। छजलानी चतुर्भुज पुच्या दीपो नाम्न्या चोरडिया मनुलाल वधू --
( 40 ) सं० १८८७ का० भु० ५ श्रीपार्श्वविवं प्र० श्रीजिन महेन्द्र मूरिणा का० । सकल श्रोसंधै।
देहलि बा दिल्ली सहर । यह भारतवर्षका एक प्राचीन स्थान है। कुरु पांडधके समयमें यही 'इंद्रप्रस्थ' था। हिन्दराजा पृथ्वीराजकी राजधानी थी। मुसलमानों के समयमें बहुत काल तक यह राजघानी रही। कुछ दिनसे अपने सरकार बहादुरने भी दिल्ली में भारतकी राजधानी स्थापनकी है और आज कल उन्नतिपर है, यहां से १ कोस पर आचार्य महाराज भोजिन कुशल सूरिजीका स्थान है जिस्को छोटे दादाजी कहते हैं और ७ कोसपर प्रसिद्ध कुतुब मिनारके पास बड़े दादाजीका स्थान है वहां कोई लेख नहीं है।
चेलपुरी का मंदिर। धातुयोंके मूर्तिपर
( 41 ) सं० ११६३ मार्गशिर सुदि १ ओ गागसादेव धम्मीयम्--( आगे अक्षर अस्पष्ट पढ़ा नहीं जाता)