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संवत् १९११ वर्षे शाके १७७६ शुचि । • दिने श्री शांतिजिन पाद ग्यासः । प्रतिष्टितः स्वरतर गच्छ महारक श्री महेन्द्र सूरिभिः सेठ श्री उदयचंद भार्या पास कुमारजी ॥
उपसंहार |
सर्व शक्तिमान परमात्माके कृपासे यह "जैन लेख संग्रह" एक सहस्र लेख सहित वर्षत्र में समाप्त हुआ । इस संग्रह के लेखों के गुण दोष विचारको आवश्यकता नहीं है । जैनियों की प्राचीन कीर्त्ति संरक्षण ही मुख्य उद्देश्य है । मुद्राकरके दोष से, संशोधनकर्त्ताके प्रमाद इत्यादि कारणों से छपाई में बहुत अशुद्धियां रह गई हैं। मर्थना है कि विद्वज्जम अपराध क्षमा करें और सुधार कर पढ़ें। और पाठक जनों से निवेदन है कि बहुत सी अशुद्धियां मूल में ही विद्यमान है, जिसको सुधारा नहीं गया है । पाठकों के सुगमता के लिये ज्ञाति, गोत्र, गच्छ, आचार्यों की अकारादिक्रमसे तालिका भी दी गई है। जिन सज्जनों ने “संग्रह में" मदद दी है उन सभीका में कृतज्ञ हूं। यदि यह संग्रह जैन माई आदर से ग्रहण कर मुझे अनुगृहीत करें तो इसका दूसरा भाग शीघ्र प्रकाशित करने का उत्साह बढ़ेगा। अलमिति विस्तरेण
कलकत्ता
संग्रहकर्ता
ई० सं० १९९८