Book Title: Jaina Inscriptions
Author(s): Puranchand Nahar
Publisher: Puranchand Nahar

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Page 276
________________ १२१६) सुत महं मदन सुन महं धीणा । श्री कुमरसिंह सुत महं ऊदल प्रभूति पंच कुलेन श्री पार्श्वनायः देव प्रतिवद्ध श्री चैत्र गच्छीय श्रीदेवचंद्र सूरि संताने श्री अमरचंद्र सूरि शिष्य श्री अजित देव सूरीणा मुपदेशेन हह द्वय भूमिः प्रदत्ता आ चंद्रा नंदतु ॥ बहुभिर्वसुधा भुक्ता राजभिः सगरादिभिः। यस्य यस्य यदा भूमि स्तस्य तस्य तदा फलं । (936 ) संवत् १३४५ वर्षे चेत्र सुदि १५ गुरावधेह रत्न पुरे महाराज कुल श्री सांवा सिंह। कल्याण विजह राज्ये नियुक्त महं• कदुआ प्रभूति पंच कुल प्रतिपत्ती श्री पार्श्वनाथ प्रतिवद्ध महा महणावे सांता मह विजयपाल गो. लषण प्रति समस्त गोष्ठिकानां विदितं अक्ष्यराणि प्रयच्छति यथा रत्नपर वास्तव्य गूर्जर न्यातीय . राजा सुत बादा गांगा सुत मंडलिक मदन प्रति कानां देव श्री पार्श्वनाथ प्रतिबद्ध तोडक प्रवेश द्वार दक्षिण हस्त प्रथम हहात् द्वितीय हह . गांगा श्रेयोर्य वादा सत्क देव कुलिका विंध पूजापनार्थं श्री पार्श्वनाथ देवेन गोष्ठिके। विदित रह समर्पितं । अस्य हह निक्रद प्रतिदेव श्री पार्श्वनाथस्य श्री वाचकेन वीसल प्रीययाय एक विशसत्याधिक शत मेकं प्रदत् । हमिदं चक्षि गोष्टिक: संमिलते मूत्वा भाहक संस्था करणीया स्वास्मीय परिणा घोष्ठि शादा अतक सांध विनः माह के हह कस्यापि नार्पणीयं । तथा सस्क उसपत्ति व्यय कर्ण वागोष्ठिकान विना एकाकिनैः न कर्तव्या। उतपत्ति मध्यातु देव कुलिकाया बिंधानां नेचकप देवी• दु२। ३ वर्ष प्रतिदातव्या उतपत्ति मध्यात् हह पतित दुसित पदे कमठाय कारापनीया। यच्च माहक स्वरु द्रव्यं बर्द्धति सत् पोष कल्याणक दिने देव कलिकाया बिंव भोग करणोय। उरितं द्रव्यं श्री पार्श्वनाथ सत्क नालि कायां यवं । ग्यां खेपनीयं निक्षेप उधार गोष्ठिकै करणीय। अत्र मतान महा महणा मतं घोष्टि सोता मत्तं धराणे गमी वा हस्तेन महं विजय पाल मतं । गोष्टिक षणा मतंस

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