Book Title: Jain Tattva Pariksha
Author(s): Udayvijay Gani
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 8
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org || BIT: 11 * सुज्ञ बन्धुओ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आ ग्रन्थनी रचना करनार परमपूज्य परमोपकारी परमकृपालु प्रातःस्मरणीय पूज्यपाद विहितभगवती ये। गेोद्वहनादिप्र वचनोक्तशुद्ध क्रियाकलाप विद्यापीठादिप्रस्थान पंचकाराधक समाराति श्रीसूरिमन्त्र अमेयमहिमानिवान भारतमेदिनीमार्तण्ड जगद्विभूषण भट्टारक श्रीमत्तपोगच्छाचार्य श्रीमान् विजयने मिसुरी - श्वरजी महाराजना शिष्यरत्न सिद्धान्तवाचस्पति न्यायविशारद अनुयोगाचार्य ओ ही श्री महोपाध्यायजी श्रीमान् उदयविजयजी गणिजी महाराज छे. ७ ७ ♡ W ग्रन्थकर्ता महाराजश्रीने तथा न्यायवाचस्पति शास्त्रविशारद अनुयोगाचार्य ओही श्री महोपाध्याय श्रीदर्शन विजयजी गणिजीने, तथा अनुयोगाचार्य पन्यासजी श्रीप्रतापविजयजीगणिजीने संवत १९६९ मां कपडवंजमा भट्टारक सूरीश्वरजीमहाराजश्रीए भगवतीजीना योगोद्रहन करावी श्रीसंघना विशाल हर्ष साथ गणिपद पन्यासपद अनुयोगाचार्यपद आप्या हता ते सुविदितज छे. हालना चालू वर्ष १९७३ ना मागशर वदी ३ ने दिवसे श्रीसादरी - शहरमा भट्टारक सूरीश्वरजी महाराजसाहेबे श्रीमान् न्यायवाचस्पति शास्त्रविशारद अनुयोगाचार्य ओ ही श्री महोपाध्यायजी श्री दर्शन विजयजीगणिजीमहाराजने तथा ग्रन्थकर्ता महाशय श्रीमान् सिद्धान्तवाचस्पति न्यायविशारद अनुयोगाचार्य ओ ही श्री महोपाध्यायजी श्रीउदयविजयजीगणिजीने-न्यायवाचस्पति शास्त्रविशारद तथा सिद्धान्तवाचस्पति न्यायविशारद For Private And Personal Use Only W

Loading...

Page Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54