Book Title: Jain Tattva Pariksha
Author(s): Udayvijay Gani
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha

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Page 12
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ अर्हम् ॥ || ऐदयुगीन श्री संघशरण्यक्रमकजेभ्यो निखिलगुणरत्नरोहणगिरिभ्यो भट्टारकी तपोगच्छाचार्यश्रीमद्विजयने मिसूरीश्वरेभ्यो नमो नमः ॥ ॥ तदन्तेवासि विनेयसिद्धान्तवाचस्पति - न्यायविशारदअनुयोगाचार्य - ओ ही श्री महोपाध्याय - श्रीमद् उदयविजयगणिना विनिर्मिता ॥ ॥ जैनतत्त्वपरीक्षा. ॥ सुरासुरनतं नौमि वीरं विश्वार्थवेदिनम् । सर्वकर्मविनिर्मुक्तं, वागीशं शिवसौख्यदम् ॥१॥ नमस्कृत्य तमोपोहं, स्यात्कार किरणान्वितम् । तीर्थकृत्सूक्तमार्त्तण्ड, भव्यपाथोजबोधकम् ॥२॥ ऐदंयुगीन सङ्घस्या-धिपं नत्वा मुहुर्गुरुम् । नेमिसूरिं मुदा वक्ष्ये, जैनतत्त्वपरीक्षणम् ॥३॥ इह नादिमहामोहमतङ्गजमालिन्यनवरतदुःखावर्त्तपरम्परापरिगते जन्मजरामरणहर्षामर्षरोगो द्वेगशोकाधिव्याध्युपाध्युपद्रवसङ्कटमकरशतसहस्रोपनिपातसङ्कुले सभेदप्रभेदनारकतिर्यग्नरामरगतिचतुष्कदिक्चक्रवाल इष्टानिष्टवियोगसम्प्रयोगवीची For Private And Personal Use Only

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