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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
हो जायगी तब लोग बिलों से निकलेंगे। वे पथ्वी को सरस सुन्दर और रमणीय देखकर बहुत प्रसन्न होंगे। एक दूसरे को बुलावेंगे और खूब खुशियाँ मनावेंगे । पत्र, पुष्प, फल आदि से शोभित वनस्पतियों से अपना निर्वाह होते देख वे मिलकर यह मर्यादा बांधेगे कि आज से हम लोग मांसाहार नहीं करेंगे
और मांसाहारी प्राणी की छाया तक हमारे लिए परिहार योग्य (त्याज्य) होगी।
इस प्रकार इस बारे में पृथ्वी रमणीय हो जायगी। प्राणी मुखपूर्वक रहने लगेंगे । इस आरे के मनुष्यों के छहों संहनन और छहों संस्थान होंगे। उनकी अवगाहना बहुत से हाथ की और आयु जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट सौ वर्ष झाझेरी होगी। इस आरे के जीव मर कर अपने कर्मों के अनुसार चारों गतियों में उत्पन्न होंगे,सिद्ध नहीं होंगे। यह आरा इक्कीस हजार वर्षका होगा। (३) दुषम सुषमा--यह आरा बयालीस हजार वर्ष कम एक कोड़ाकोड़ी सागरोपम का होगा। इसका स्वरूप अवसर्पिणी के चौथे
आरे के सदृश जानना चाहिए । इस आरे के मनुष्यों के छहों संस्थान और छहों संहनन होंगे। मनुष्यों की अवगाहना बहुत से धनुषों की होगी। आयु जघन्य अन्तर्मुहूर्त उत्कृष्ट एक करोड़ पूर्व की होगी । मनुष्य मरकर अपने कर्मानुसार चारों गतियों में जायँगे और बहुत से सिद्धि अर्थात् मोक्ष प्राप्त करेंगे । इस
आरे में तीन वंश होंगे-तीर्थकरवंश, चक्रवर्तीवंश और दशारवंश । इस बारे में तेईस तीर्थकर, ग्यारह चक्रवर्ती,नौ बलदेव, नौ वासुदेव और नौ प्रतिवासुदेव होंगे। (४) सुषम दुषमा--यह आरा दो कोडाकोड़ी सागरोपम का होगा और सारी बातें अवसर्पिणी के तीसरे आरे के समान होंगी।