Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 02
Author(s): Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner

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Page 481
________________ गोत्र बांधने के 20 बोल, महामोहनीय के 30 बोल, वन्दना के दोष, श्रावक के तीन मनोरथ आदि 40 विषयों का वर्णन है / मू० ) प्रतिक्रमण ( मून )—विधि सहित / मू० -) प्रतिक्रमण(सार्थ)- शब्दार्थ भावार्थ और विधि सहित / मू०३) सामयिकसूत्र (मूल)-विधि सहित / आधा आना सामायिसूत्र(सार्य)-शब्दार्थ नावार्थ एवं बत्तीस दोष सहित / मूo-)| श्रावक-नित्य-नियम-नित्य पाठ योग्य / मूल्य प्राधा आना प्रकरणथोकडासंग्रह (दूमरा भाग)- यह पुस्तक मुनि श्री उत्तमचन्दजी स्वामी द्वारा संगृहीन एवं संशोधित है / इसमें पच्चीस क्रियाएं, योनि के बोल,गर्भावास के बोन, श्वासोवास के बोल, जीव के चौदह भेदों की चर्चा, जीव के 563 भेदों की चर्चा, महादण्डक, चार घ्यान, देशबन्ध, सर्वबन्ध, संख्याता असंख्याता, पाँच शरीर, पाँच इन्द्रियों, पुद्गल परावर्तन, पाँच ज्ञान. सप्रदेशी अप्रदेशी, पढमापढ़म.चरमाचरम, आहारक-अनाहारक, बन्धिशतक, समवसरण के बोल, लन्धि के बोल आदि 27 थोकड़ों का वर्णन हैं / ग्रन्थ बा उपयोगी और तत्वज्ञान परिपूर्ण है / पक्की जिल्द मूल्य सिर्फ 1) प्रस्तार रत्नावली- यह ग्रन्थ भारतभूषण शतावधानी पंडित मुनिश्री रत्नचन्द्रजी स्वामी ने बड़े परिश्रम से तैयार किया है / इसमें गांगेय अनगार के भांगें, श्राषक व्रत के भांगे और श्रानुपूर्वी के भांगे हैं। इन सब भांगों का गणित विस्तार-पूर्वक किया गया है तथा नष्ट, उद्दिष्ट और प्रस्तार बनाने का उदाहरण सहित प्रकार बतलाया गया है। इस थोकड़े का अभ्यास करना, मानों अपने मन को रोकना है और मन को रोकना ही ध्यान है / अतः इस थोकड़े के अभ्यास से शुभ ध्यान का लाभ होता है / पक्की जिल्द / मूल्य ?) श्रावक के बारह व्रत-(चौदह नियम सहित -जैन-जीवन चर्या में

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