________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह 381 वहाँ नोजीव नामक पदार्थ न मिला तो संसार में उसका अभाव मान लेना चाहिये / राजा और दूसरे सभासदों को यह बात पसन्द आगई। .. पडुलूक रोहगुप्त को नोजीव नामक पदार्थ लाने की आज्ञा दी गई / उसने कुत्रिकापण में जाकर एक वस्तु को चार तरह से लाने के लिए कहा- पृथ्वो लाओ। __दूकान के अधिष्ठता देव ने मिट्टी का ढेला लाकर दे दिया। . रोहगुप्त- यह ठीक नहीं है !मैने जो मांगा तुम उसे नहीं लाए। देव- पृथ्वी का एक देश भी पृथ्वी कहा जाता है, क्योंकि इसमें भी पृथ्वीत्व जाति है / इसलिए यह ढेला भी पृथ्वी है। रोहगुप्त ने कहा-अपृथ्वी लाओ। देव ने जल लाकर दे दिया रोहगुप्त- नोपृथ्वी लाओ। देव ने ढेले का एक टुकड़ा लाकर दे दिया। शंका-'नो' शब्द का अर्थ देशनिषेध मानने पर पृथ्वी का भाग ही नोपृथ्वी कहा जाता है / यह टुकड़ा पृथ्वी के एक देश ढेले का एक भाग है। यह तो देश का देश है। इसलिए नोपृथ्वी नहीं कहा जा सकता। उत्तर- पहले प्रश्न में ढेले को पृथ्वीमान लिया गया है। इस लिये ढेले का एक देश पृथ्वी का एक देश कहा जा सकता है।यदि ढेला पृथ्वी नहीं है तो 'पृथ्वी लाओ' ऐसा कहने पर सारी पृथ्वी लानी पड़ेगी। यह बात सम्भवनहीं है। जिस तरह ‘घड़ा लाओ' ऐसा कहने पर सारे घड़े न लाकर कोई खास घड़ा ही लाया जाता है, क्योंकि सब घड़ों का लाना न तो सम्भव है और न सब से प्रयोजन ही है। वक्ता का अभिपाय समझकर किसी खास जगह पर रखा हुआ ही घड़ा लाया जाता है। इसी तरह पृथ्वी लामो कहने पर सम्पूर्ण पृथ्वी