Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 02
Author(s): Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner

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Page 442
________________ मी जैन सिद्धान्त बोल हर कि आहार कर सकते हैं, क्योंकि पात्र में लाकरएक दूसरे को आहार दिया जा सकता है। मात्रक की भी बहुत सीबातों के लिए आवश्यकता है, इसलिए पात्र और मात्रक दोनों का रखना आवश्यक है। ___साधु को सारे परिग्रह का त्याग होता है, यह बात जो शास्त्रों में लिखी है, उसका यही अभिप्राय है कि साधु को किसी भी वस्तु में मूच्छों नहीं होनी चाहिए। किसी वस्तु को.न रखना उसका अभिप्राय नहीं है। तीर्थङ्कर भगवान् अनुपम धैर्य और संहनन वाले होते हैं। छद्मस्थावस्था में भी चार ज्ञान के धारक होते हैं / अत्यधिक पराक्रम शाली होते हैं / उनके हाथ में छिद्र नहीं होता, इसलिए पाणिपात्र होते हैं। सभी परिषहों को जीते हुए होते हैं / कपड़े न होने पर भी उनको संयमविराधना आदि दोष नहीं लगते। इस कारण से तीर्थङ्करों के लिए वस्त्र संयम का साधक नहीं होता। वे बिना वस्त्रों के भी संयम की पूर्ण रक्षा कर सकते हैं। शंका- यदि तीर्थङ्कर वस्त्र धारण नहीं करते तो सभी तीर्थङ्कर एक वस्त्र के साथ दीक्षा लेते हैं ' यह उक्ति असंगत हो जायगी। उत्तर- यद्यपि तीर्थङ्करों को संयम के लिए वस्त्रों की जरूरत नहीं पड़ती तो भी वे चाहते हैं कि सवस्त्र तीर्थ को चलाया जाय और साधु सवस्त्र ही रहें। इसी बात को बताने के लिए दीक्षा लेते समय वे एक कपड़े के साथ निकलते हैं / उस कपड़े के गिर जाने पर वे वस्त्र रहित हो जाते हैं। ___ जिनकल्पिक साधु तो हमेशा ही उपकरण वाले रहे हैं। इसीलिए सामर्थ्यानुसार उनकी उपधियों के दो, तीन आदि भेद किए हैं। सर्वथा उपकरण रहित होनातो एक नयाही मत है। ___ तीर्थङ्करों के स्वयं कथञ्चित् वस्त्र रहित होने पर भी उनका उपदेश है कि साधारण शक्ति वाले पुरुष को वस्त्र सहित रहना

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