Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 02
Author(s): Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner

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Page 440
________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह प्रदक्षिणावर्त, भारीपन और कुष्ठनाश / शंका- अगर यह बात है तो परिग्रह और अपरिग्रह का भेद ही नष्ट हो जायगा ।सुवर्ण वगैरह जो परिग्रह रूप से प्रसिद्ध हैं उन्हें आपने अपरिग्रह सिद्ध कर दिया / देहादि को, जिन्हें कोई भी परिग्रह नहीं कहता, परिग्रह सिद्ध कर दिया। आप का अनुमान है- देह परिग्रह है, क्योंकि कषायादि का कारण है। जैसे-सोना / अब आप ही बताइए परिग्रह क्या है ? और अपरिग्रह क्या है ? उत्तर- वास्तव में कोई भी वस्तु परिग्रह या अपरिग्रह नहीं है / जहाँ पर धन, शरीर, आहार, कनक आदि में मृच्छा होती है, वहीं परिग्रह है / जहाँ मूर्छा नहीं है वहाँ परिग्रह नहीं है। शंका- वस्त्रों से संयम का क्या उपकार होता है ? उत्तर- सूत और ऊन के कपड़ों से शीत का निवारण होता है।शीतात व्यक्ति आर्तध्यान करता है। शीत का निवारण होने से आर्तध्यान नहीं होता / वस्त्रों के अभाव में लोग शीत निवारण करने के लिए अग्नि जलाते हैं। उसमें बहुत से त्रस और स्थावर जीवों की हिंसा होती है / कपड़े होने पर इस की आवश्यकता नहीं है क्योंकि इसके बिना ही शीतनिवृत्ति हो जायगी। जो साधु रात्रिजागरण करते हैं, उनके लिए नियम है कि वे चारों कालों का ग्रहण करें। बर्फ वाली ठंडी रात में कपड़े होने से साधुओं की स्वाध्याय और ध्यान निर्विघ्न हो सकते हैं। आधीरात के उपरान्त ऊपर से गिरती हुई सचित पृथ्वी से बचने के लिए इनकी आवश्यकता है। ओस, वर्षा, बर्फ और ऊपर से गिरती हुई सचित्त धूलि तथा दीपक वगैरह कीप्रभा से बचने के लिए वस्त्रों की आवश्यकता है मृत के ऊपर ढकने के लिए तथा उसे निकालते वक्त ओढ़ाने के

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