________________ 388 भी सेठिया जैन प्रन्थमाला देने आया। वहाँ जाने पर सब ने उस का सन्मान किया और कहा-आप इसी उपाश्रय में ठहर जाइए,अलग ठहरने की क्या आवश्यकता है ? लेकिन वह न माना / अलग जगह ठहर कर दुर्बलिका पुष्पमित्र की निन्दा के द्वारा साधुओं को बहकाने की चेष्टा करने लगा, किन्तु कोई भी उस की बात नहीं मानता था। वह अभिमान के कारण दुर्बलिका पुष्पमित्र का व्याख्यान सुनने भी न जाता किन्तु व्याख्यान मण्डप में बैठ कर चिन्तन करते हुए विन्ध्य से सब कुछ जान लेता। __एक दिन आठवें और नवें पूर्व के प्रत्याख्यान विचार में हठ के कारण उसने विवाद खड़ा कर दिया।कर्मप्रवाद नाम के आठवें पूर्व में कर्म विचार करते हुए दुर्बलिका पुष्पमित्र ने व्याख्यान दिया-- जीव के साथ कर्मों का संयोग तीन तरह का होता है। वद्ध,बद्धस्पृष्ट और बद्ध-स्पृष्ट-निकाचित / कषायरहित ईर्यापथिकी आदि क्रियाओं से होने वाला कर्मों का संयोग बद्ध कहा जाता है। बद्ध कर्म स्थिति को बिना प्राप्त किये ही जीव से अलग हो जाता है। जैसे सूखी दीवार परपड़ी हुई धूल / बद्ध होने के साथ 2 कर्मों का जीव प्रदेशों में मिल जाना बद्धस्पृष्ट कहा जाता है। बद्धस्पृष्ट कर्म कुछ समय पाकर ही अलग होते हैं। जैसे लीपी हुई गीली दीवार पर चिपकाया गया गीला श्राटा। ___ यह स्पृष्ट कर्म जब तीव्र कषाय या अध्यवसाय पूर्वक बांधा जाता है और बिना भोगे छूटना असम्भव हो जाता है तो उसे बद्ध - स्पृष्ट निकाचित कहते हैं। बहुत गाढा बँधा होने से यह कालान्तर में भी प्रायः फल दिये बिना नहीं जाता। जैसे गीली दीवार पर लगाया हुआ हस्तक अर्थात् हाथ का चित्र / तीनों तरह का बंध सूचीकलाप की उपमा देकर और स्पष्ट किया जाता है। जो कर्म धागे में लपेटी हुई सूइओं के समान