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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला.
नहीं दिखाई देता । जिस क्षण में जिस कार्य के लिये क्रिया होती है, उस क्षण में वही दिखाई दे सकता है, दूसरा नहीं पिड आदि अवस्थाएं घट से भिन्न हैं । इस लिए यह मानना पड़ता है कि घट की उत्पत्ति के लिए क्रिया अन्तिम क्षण में हुई। उस समय घटकृत है और दिखाई भी देता है। यदि क्रिया के वर्तमान क्षण में घट को कृत नहीं माना जाता, तो भूतकालीन या भविष्यत् क्रिया से वह कैसे उत्पन्न हो सकता ? इसके लिए अनुमान दिया जाता है- अतीत और भविष्यत् क्रियाएं कार्य को उत्पन्न नहीं कर सकतीं क्योंकि वे अविद्यमान अर्थात् असत् हैं । जो असत् है वह किसी कार्य को उत्पन्न नहीं कर सकता जैसे गगनकुसुम । इस लिए वर्तमान क्रिया में ही कार्योत्पत्ति का सामर्थ्य मानना पड़ेगा और उसी समय कार्य की उत्पत्ति या उसे कृत कहा जायगा ।
यदि क्रियमाण कृत नहीं है तो कृत किसे कहा जायगा ? क्रिया की समाप्ति होने पर तो उसे कृत अर्थात् उत्पन्न किया हुआ नहीं कहा जा सकता, क्योंकि उस समय क्रिया ही नहीं है। यदि क्रिया के अभाव में भी कार्य का होना मान लिया जाय तो क्रिया प्रारम्भ होने से पहिले भी कार्य हो जायगा, क्योंकि क्रिया का अभाव दोनों दशाओं में समान है। ऐसी दशा में क्रिया का वैयर्थ्य बहुत मत में ही होगा ।
शङ्का - जिस समय कार्य हो रहा है, उसे क्रियमाण काल कहते हैं। उस के बाद का काल कृतकाल कहा जाता है । क्रियमाण काल में कार्य नहीं रहता, इसी लिए 'अकृत' किया जाता है 'कृत' नहीं ।
उत्तर - कार्य क्रिया से होता है या उस के बिना भी ? यदि क्रिया से? तो यह कैसे हो सकता है कि कार्य दूसरे समय में