Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 02
Author(s): Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner

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Page 410
________________ . मPATE TRENA श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह खण्डशः नाश मान लिया जाय तो कभी न कभी उस का सर्वनाश भी मानना पड़ेगा / जो वस्तु खंडशः नष्ट होती है घटपटादि की तरह उसका सर्वनाश भी अवश्य होता है। शंका- अगर इस तरह जीव का नाश मान लिया जाय तोक्या हानि है ? समाधान-जीव का नाश मान लेने से जैनमत का त्याग करना होगा। शास्त्र में कहा है, हे भगवन् ! जीव बढ़ते हैं, घटने हैं या एक सरीखे स्थिर हैं ? हे गौतम ! जीव न बढ़ते हैं न घटने हैं। हमेशा स्थिर रहते हैं। जीव का सर्वनाश मान लेने से कभी मोक्ष नहीं होगा क्योंकि मुमुक्षुका नाश तो पहिले ही हो जायगा।मोक्ष न होने से दीक्षा वगैरह लेनाव्यर्थ हो जायगा। क्रम से सभी जीवों का नाश हो जाने से संसार शून्य हो जायगा / जीव के नाश होने पर किये हुए कर्मों का नाश होने से कृतनाश दोष आयगा।अतः जीव का खंडशः मानना नाश ठीक नहीं। छिपकली आदि के औदारिक शरीर का ही नाश होता है।वही प्रत्यक्ष दिखाईदेता है। जीव कानाश नहीं दिखाईदेता। शंका-जिस तरह पुद्गलस्कन्ध सावयव होने से संघात और भेद वाला माना जाता है अर्थात् एक पुद्गलस्कन्ध में दूसरे स्कन्ध के परमाणु आकर मिलते हैं और उससे अलग हो कर दूसरी जगह चले जाते हैं, इसी तरह जीव में भी दूसरे जीव के प्रदेश आकर मिलते रहेंगे और उस जीव के अलग होते रहेंगे / इस प्रकार मानने से जीव का नाश नहीं होगा। एक तरफ से खण्डशः नाश होता रहेगा, दूसरी तरफ से प्रदेशों का संघात होता रहेगा। ___ उत्तर- यह ठीक नहीं है। इस तरह संसार के सारे जीवों में परस्पर मिलावट हो जायगी। एक जीव के बाँधे हुए शुभाशुभ कर्मों का फल दूसरे को भोगना पड़ेगा।कृत का नाश और अकून

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