________________ 366 श्रीसेठिया जैन प्रन्थमाला इस तरह युक्ति से समझाने पर भी अश्वमित्र न माना तो राजगृह में खण्डरक्षकों के द्वारा भय और युक्ति दोनों से समझाया जाने पर वह अपने गुरु के पास चला आया। (5) द्वैक्रिय- भगवान महावीर की मुक्ति के दो सौ अट्ठाईस वर्षे बाद दैक्रिय नामक पाँचवा निव हुआ। ___उल्लुका नाम की नदी के एक किनारे उल्लुकातीर नाम का नगर बसा हुआ था। दूसरे किनारे धूलि के आकार वाला एक खेड़ा था ।नदी के कारण वह सारा प्रदेश उल्लुका कहलाता था / नगर में महागिरि का शिष्य धनगुप्त रहता था। उनका शिष्य आर्यगङ्ग नाम का आचार्य था / वह नदी के पूर्व तट पर रहता था और आचार्य दूसरे तट पर / एक दिन आचार्य को वन्दना करने के लिए जाते हुए आर्यगङ्ग को नदी पार करनी पड़ी। खल्वाट (गंजा) होने से उसकी खोपड़ी तप रही थी। नदी का जल ठंडा होने से पैरों में शैत्य का अनुभव हो रहा था / मिथ्यात्व मोहनीय का उदय होने से उसके मन में विचार आया- शास्त्र में दो क्रियाओं का एक साथ होना निषिद्ध है / लेकिन मैं सरदी और गरमी दोनों का एक साथ अनुभव कर रहा हूँ / अनुभव के विपरीत होने से शाख का वचन ठीक नहीं है। उसने अपना विचार गुरु के सामने रखा / गुरु ने उसे बहुत सी युक्तियों से समझाया। फिर भी हठ न छोड़ने पर संघ से बाहर कर दिया गया। घूमता हुआ वह राजगृह नगर में आया / वहाँ पर महातपस्तीरमभव नाम के झरने के किनारे मणिनाग यक्ष का चैत्य है / उसके समीप सभा में गङ्ग ने एक साथ दो क्रियाओं के अनुभव का उपदेश दिया। यह सुनकर क्रोधित मणिनाग ने कहा- अरे दुष्ट ! यह क्या कहते हो ? एक दिन यहीं पर भगवान महावीर