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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
(५) राग, द्वेष, मद,मोह, जन्म, जरा, रोगादि का अत्यन्त क्षय हो जाना मोक्ष है। (६) सम्यग्ज्ञान, दर्शन और चारित्र तीनों मिलकर मोक्ष का उपाय हैं।
(धर्मसंग्रह अधिकार २) (प्रवचनसारोद्धार गाथा ६२६-६४१) ४५४- समाकत की छः भावना
विविध विचारों से समकित में दृढ़ होना समकित की भावना है। वे छः हैं(१) सम्यक्त्व धर्म रूपी वृक्ष का मूल है। (२) सम्यक्त्व धर्म रूपी नगर का द्वार है। (३) सम्यक्त्व धर्म रूपी महल की नींव है। . (४) सम्यक्त्व धर्म रूपी जगत का आधार है। (५) सम्यक्त्व धर्म रूपी वस्तु को धारण करने का पात्र है। (६) सम्यक्त्व चारित्र धर्म रूप रत्न की निधि (कोप) है।
(प्रवचनसारोद्धार गाथा : २६-८४१ ) (धर्मसंग्रह अधिकार २ ) ४५५- समकित के छः आगार
वत अङ्गीकार करते समय पहले से रखी हुई छूट को आगार कहते हैं। सम्यक्त्व धारी श्रावक के लिये अन्यतीर्थिक तथा उसके माने हुए देवादि को वन्दना नमस्कार करना, उनसे आलाप संलाप करना और गुरुबुद्धि से उन्हें आहारादि देना नहीं कल्पता । इसमें छः आगार हैं। (१) राजाभियोग- राजा की पराधीनता (दबाव) से यदि समकित धारी श्रावक को अनिच्छापूर्वक अन्यतीर्थिक तथा उनके माने हुए देवादि को वन्दना नमस्कार आदि करना पड़े तो श्रावक सम्यक्त्व व्रत का अतिक्रमण नहीं करता।