________________
श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
..(१-४) पांचवें बोल संग्रह के बोल नं० २६१ में प्रमाद के पांच
भेदों में (१) मद्य, (२) निद्रा, (३) विषय और (४) कपाय . रूप चार प्रमादों का स्वरूप दिया जा चुका है। (५) द्यूत प्रमाद-जूआ खेलना द्यूत प्रमाद है। जूए के बुरे परिणाम संसार में प्रसिद्ध हैं।जुआरी का कोई विश्वास नहीं करता। वह अपना धन,धर्म,इहलोक,परलोक सब कुछ बिगाड़ लेता है। (६)प्रत्युपेक्षणा प्रमाद-बाह्य और आभ्यन्तर वस्तु को देखने में आलस्य करना प्रत्युपेक्षणा प्रमाद है । द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव के भेद से प्रत्युपेक्षणा चार प्रकार की है। (क) द्रव्य प्रत्युपेक्षणा- वस्त्र पात्र आदि उपकरण और अशनादि आहार को देखना द्रव्य प्रत्युपेक्षणा है। (ख) क्षेत्र प्रत्युपेक्षणा- कायोत्सर्ग, सोने, बैठने, स्थण्डिल, मार्ग तथा विहार आदि के स्थान को देखना क्षेत्र प्रत्युपेक्षणा है। (ग) काल प्रत्युपेक्षणा- उचित अनुष्ठान के लिए काल विशेष का विचार करना काल प्रत्युपेक्षणा है।
(घ) भाव प्रत्युपेक्षणा-मैंने क्या क्या अनुष्ठान किये हैं, मुझे ... क्या करना बाकी रहा है एवं मैं करने योग्य किस तप का आच
रण नहीं कर रहा हूँ, इस प्रकार मध्य रात्रि के समय धर्म
जागरणा करना भाव प्रत्युपेक्षणा है। . उक्त भेदोंवाली प्रत्युपेक्षणा में शिथिलता करना अथवा तत्- . सम्बन्धी भगवदाज्ञा का अतिक्रमण करना प्रत्युपेक्षणा प्रमाद है।
(ठाणग ६ स्त्र ५०३) ४५७-उन्माद के छः बोल
महामिथ्यात्व अथवा हित और अहित के विवेक को भूल