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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
जैन दर्शन में जीव अनेक, कर्त्ता, भोक्ता और देह परिमाण है । बन्धहेतु
चार्वाक मत में मोक्ष नहीं है, इसलिए बन्ध हेतु, बन्ध, मोक्ष उसके साधन और अधिकारी का प्रश्न ही नहीं होता । बौद्ध अस्मिताभिनिवेश अर्थात् अहङ्कार को बन्ध का कारण मानते हैं। जैन मत में राग और द्वेष बन्ध के कारण 1
बन्ध
बौद्धमत में आत्मसन्तानपरम्परा का बना रहना ही बन्ध है । उसके टूटते ही मोक्ष हो जाता है। जैन दर्शन में कर्मपरमाणुओं का आत्मा के साथ सम्बन्ध होना बन्ध माना गया है।
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मोक्ष
बौद्ध मत में सन्तानपरम्परा का विच्छेद ही मोक्ष है। जैन दर्शन में कर्मों का सर्वथा क्षय होजाना मोक्ष है ।
साधन
बौद्धदर्शन में संसार को दुःखमय, क्षणिक. शून्य आदि बताया गया है। इस प्रकार का चिन्तन ही मोक्ष का साधन है। तपस्या और विषयभोग दोनों से अलग रहकर मध्यम मार्ग को अपनाने से ही शान्ति प्राप्त होती है। जैनदर्शन में संवर और निर्जरा को मोक्ष का साधन माना है ।
अधिकारी
बौद्ध और जैन दोनों दर्शनों में संसार से विरक्त मनुष्य तत्वज्ञान का अधिकारी माना गया है ।
वाद
चार्वाकों में वस्तु की उत्पत्ति के विषय में कई बाद प्रचलित हैं उन में मुख्य रूप से स्वभाववाद है । अर्थात् वस्तु की उत्पत्ति और विनाश स्वाभाविक रूप से अपने श्राप होते रहते हैं ।