________________
श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
(२) गणाभियोग-गण का अर्थ है समुदाय या संघ । संघ के आग्रह से अनिच्छापूर्वक अन्यतीर्थिक और उनके माने हुए देवादि को वन्दना नमस्कार करना पड़े तो श्रावक समकित व्रत का अतिक्रमण नहीं करता। (३) बलाभियोग-बलवान् पुरुष द्वारा विवश किया जाने पर अन्यतीर्थिक को वन्दना नमस्कार आदि करना पड़े तो श्रावक समकित वत का उल्लंघन नहीं करता। (४) देवाभियोग-देवता द्वारा बाध्य होने पर अन्यतीर्थिक को वन्दना नमस्कार आदि करना पड़े तो श्रावक समकित व्रत का अतिक्रमण नहीं करता। (५) गुरुनिग्रह-माता पिता आदि गुरुजन के आग्रह वश अनिच्छा से अन्यतीर्थिक को वन्दना नमस्कार करने पर श्रावक समकित से नहीं गिरता। (६)वृत्तिकान्तार-वृत्ति का अर्थ है आजीविका और कान्तार शब्द का अर्थ है अटवी (जंगल)।जैसे अटवी में आजीविकाप्राप्त करना कठिन है, उसी प्रकार क्षेत्र और काल आजीविका के प्रतिकूल हो जायँ और निर्वाह होना कठिन हो जाय, ऐसी दशा में न चाहते हुए भी अन्यतीर्थिक को वन्दना नमस्कार आदि .. करना पड़े तो श्रावक समकित व्रत का अतिक्रमण नहीं करता।
आवश्यक सूत्र में इन छः आगारों के छः दृष्टान्त दिये गये हैं। .., (उपासकदशांग अध्ययन १) (अावश्यक ६) (धर्मसंग्रह अधिकार २) ४५६-प्रमाद छः
विषय भोगों में आसक्त रहना, शुभ क्रिया में उद्यम तथा __शुभ उपयोग का न होना प्रमाद है । इसके छः भेद हैं