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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
आदि करने वाला उभयलोक प्रत्यनीक है । वह व्यक्ति अपने कुकृत्यों से यहाँ दण्डित होता है और परभव में दुर्गति पाता है। (३) समूह प्रत्यनीक-समूह अर्थात् साधु-समुदाय के विरुद्ध आचरण करने वाला समूह प्रत्यनीक है । कुलप्रत्यनीक, गण प्रत्यनीक और संघ प्रत्यनीक के भेद से समूह प्रत्यनीक तीन प्रकार का है। एक आचार्य की सन्तति कुल है, जैसे चन्द्रादि । आपस में सम्बन्ध रखने वाले तीन कुलों का समूह गण कहलाता है । ज्ञान, दर्शन और चारित्र गुणों से अलंकृत सकल साधुओं का समुदाय संघ है । कुल, गण और संघ के विरुद्ध आचरण करने वाले क्रमशः कुल प्रत्यनीक, गण प्रत्यनीक और संघ प्रत्यनीक कहे जाते हैं। (४) अनुकम्पा प्रत्यनीक-अनुकम्पा योग्य साधुओं की आहारादि द्वारा सेवा के बदले उनके प्रतिकूल आचरण करने वाला साधु अनुकम्पा प्रत्यनीक है । तपस्वी, ग्लान और शैक्ष (नवदीक्षित) ये तीन अनुकम्पा योग्य हैं । अनुकम्पा के भेद से अनुकम्पा प्रत्यनीक के भी तीन भेद हैं-तपस्वी प्रत्यनीक, ग्लान प्रत्यनीक, और शैक्ष प्रत्यनीक । (५) श्रुत प्रत्यनीक-श्रुत के विरुद्ध आचरण करने वाला श्रुत प्रत्यनीक है । सूत्र, अर्थ और तदुभय के भेद से श्रुत तीन तरह का है । श्रुत के भेद से श्रुत प्रत्यनीक के भी सूत्र प्रत्यनीक, अर्थ प्रत्यनीक और तदुभय प्रत्यनीक ये तीन भेद हैं। शरीर, व्रत, प्रमाद, अप्रमाद आदि बातें लोक में प्रसिद्ध ही हैं,फिर शास्त्रों के अध्ययन से क्या लाभ ? निगोद, देव, नारकी आदि का ज्ञान भी व्यर्थ है। इस प्रकार शास्त्रज्ञान को निष्पयोजन या उसमें दोष बताने वाला श्रुत प्रत्यनीक है।