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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
दो प्रकार के हैं । चारित्र और तप विशेष के प्रभाव से जिन्हें आकाश में आने जाने की ऋद्धि प्राप्त हो वे जंघाचारण कहलाते हैं। जिन्हें उक्त लब्धि विद्या द्वारा प्राप्त हो वे विद्याचारण कहलाते हैं। जंघाचारण और विद्याचारण का विशेष वर्णन भगवती शतक २० उद्देशा ह में है। (६) विद्याधर-चैताढ्य पर्वत के अधिवासी प्रज्ञप्ति आदि विद्याओं के धारण करने वाले विशिष्ट शक्ति सम्पन्न व्यक्ति विद्याधर कहलाते हैं । ये आकाश में उड़ते हैं तथा अनेक चमत्कारिक कार्य करते हैं। (ठा०६ सूत्र ४६१)(प्रज्ञापना पद १)(माव०मलयगिरि पूर्वार्द्ध लब्धि अधिकार पृष्ट७७) ४३९-दुर्लभ बोल छः
जो बातें अनन्त काल तक संसार चक्र में भ्रमण करने के बाद कठिनता से प्राप्त हों तथा जिन्हें प्राप्त करके जीव संसार चक्र को काटने का प्रयत्न कर सके उन्हें दुर्लभ कहते हैं। वे छः हैं(१) मनुष्य जन्म, (२) आर्य क्षेत्र (साढ़े पच्चीस आर्य देश), (३) धार्मिक कुल में उत्पन्न होना, (४) केवली प्ररूपित धर्म का सुनना, (५) केवली प्ररूपित धर्म पर श्रद्धा करना, (६) केवली प्ररूपित धर्म पर आचरण करना।
इन बोलों में पहले से दूसरा, दूसरे से तीसरा इस प्रकार उत्तरोत्तर अधिकाधिक दुर्लभ हैं। अज्ञान, प्रमाद आदि दोषों का सेवन करने वाले जीव इन्हें प्राप्त नहीं कर सकते। ऐसे जीव एकेन्द्रिय आदि में जन्म लेते हैं, जहाँ काय स्थिति बहुत लम्बी है। नोट-"दस दुर्लभ" दसवें बोल संग्रह में दिये जायँगे।
(ठाणांग ६ उ०३ सूत्र ४८५)