Book Title: Jain Shwetambar Conference Herald 1909 Book 05
Author(s): Mohanlal Dalichand Desai
Publisher: Jain Shwetambar Conference

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Page 16
________________ १६] જેન કેન્ફરન્સ હેરલ્ડ, . [on-युमा . ८. जनावरने रस मारा वो दुध, राम, सदी घास, અનાજ વગેરે તેની તબીયતને અનુસરીને આપવું. ૯ જનાવરની માવજત કરનારે જેમ જનાવરને સુખ થાય તેવી સંભાનથી તેની નોકરી કરવી. ૧૦. જનાવરનું છાણ, પિશાબ વિગેરેને તપાસ કરતાં રહેવું અને તેમાં ફેરફાર જણાયતે દવા કરનાર ફેંકટરને ખબર આપવી. મોતીચંદ કરછ ઝવેરી, मालवामें प्रांतिककानन्स होनेवास्ते प्रार्थना. इस उत्तमोत्तम जैन वर्गके धर्मोन्नति करनेके लिये इसी वर्गके उत्तम ज्ञानवान महापुरुषोंने आज (७) सात वर्ष हुए श्री जैन श्वेताम्बर कान्फरन्स नामकी एक महान् सभा स्थापितकी है जिससे इस वर्गको लाम मिलता है लेकीन इस महान् सभाके ठहरावोंको पुष्ट करना और हर प्रान्तमें हर घरमें प्रत्येक मनुष्य उन ठहरावाको अति हर्षके साथ अमलमें लाकर उसके अनुसार उपयोग करें इस लिये प्रति प्रान्तमें १,१ प्रांतिक कान्फरन्सकी अत्यन्त आवश्यक्ता है. - जनरल कान्फरन्सकी बैठक साल में एक वक्त किसी बडे शहरमें होती है. उसवक्त उस स्थानपर अपनी सर्व जैन जाति उपस्थित नहीं होती. हां (विद्यमान दौलतवान) कान्फरन्सके उदेश्यको समझने वाले गृहस्थोंका तो आगमन होता है. यदि अनुमान किया जायतो रूपेमें एकपाई मनुष्य कान्फरन्समें नहीं आते. उसमें यदि मालवेंमें तो इसस और न्यून बताया जावे तोभी सत्य है क्योंकि अन्य प्रांतोकी अपेक्षा मालवा प्रांतके लोग बहोतही कम जाते है. यहां तककी इस प्रान्तमें अपने कितनेक जैन बन्धु धर्म क्या चीज है, कान्फरन्स क्या वस्तु है, इतना तक नहीं समझते और उनको एकदम कान्फरन्समें आनेका अथवा उसके ठहराव अमलमें लानेका कहा जावे तो वो क्या उसके लिये उपाय करेगा (कुच्छ नहीं) क्योंकि वो उस बातको जानता ही नहीं. कितनेक ऐसे जो गृहस्थ हैं जो पैसा न होनेकी वजहसे जानहीं सक्ते ऐसी अवस्थामें सभ्य २ गृहस्थोंने एकत्रीत होकर अपने २ प्रान्तमें उपरोक्त कहे हुए ( जो कि कान्फरन्सके उद्देशको नहीं समझते ) ऐसे लोगोको ( व अन्य लोगोको ) कान्फरन्सका उद्देश क्या है और उससे फायदा क्या है और वह फायदा किस तरह मिल सक्ता है. वह सब उन लोगोंको ज्ञात करनेके लिये एक २ प्रान्तिक कान्फरन्सकी आवश्यक्ता है.

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