Book Title: Jain Shramani Parampara Ek Sarvekshan
Author(s): Vijayshree Sadhvi
Publisher: Bharatiya Vidya Pratishthan

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Page 9
________________ प्रत्येक अध्याय के प्रत्येक स्वर्ण-पृष्ठ पर परिदृश्यमान है। मंगल-प्रभातकी मंगल वेला में मेरीयही मंगल कामना है कि यह शोध पूर्ण महीयसी संरचना जन-मानस में दुराचार के प्रदूषण को सुदूर करती रहे, सदाचारण के पर्यावरण को परिव्याप्त करे, जिससे मानव-जाति उत्तमांग गौरव-गरिमा से उन्नत एवं उदात्त हो सकेगी। उपाध्याय रमेश मुनि वल्लभ विहार, दिल्ली 9-5-2007 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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