________________
जैन श्रमणी परम्परा : एक सर्वेक्षण थी। श्री प्रमोदश्री जी, श्री सुमनकुमारी जी द्वारा भी कई कलात्मक कृतियाँ निर्मित हुई। श्री संघमित्रा जी, श्री राजिमती जी, श्री जतनकंवर जी, श्री कनकश्री जी, श्री यशोधरा जी, श्री स्वयंप्रभा जी आदि कई श्रमणियों ने चिंतनप्रधान उत्तम कोटि का साहित्य जन जीवन को प्रदान किया।
महाश्रमणी एवं संघ महानिदेशिका साध्वी प्रमुखा श्री कनकप्रभा जी की अजस्र ज्ञान गंगा से लगभग 115 पुस्तकों का लेखन व सम्पादन हुआ है, जो अपने आप में अनूठा कार्य है। जयश्री जी आदि कई श्रमणियों की उत्कृष्ट काव्य कला की विद्वद्जनों ने मुक्त कंठ से प्रशंसा की है, अमितप्रभा जी आदि कई साध्वियाँ शतावधानी हैं। श्री लावण्यप्रभा जी उज्ज्वलप्रभा जी, सरलयशा जी, सौभाग्ययशा जी आदि कई श्रमणियों ने शिक्षा के अत्युच्च शिखर को छुआ है। समणी साधिकाओं में भी श्री स्थितप्रज्ञा जी, कुसुमप्रज्ञा जी, उज्ज्वलप्रज्ञा जी, अक्षयप्रज्ञा जी आदि विदुषी चिन्तनशील समणियाँ हैं, जो उच्च कोटि का साहित्य सृजन कर समाज को नई दिशा प्रदान कर रही हैं तथा सुदूर देश विदेशों में जाकर ध्यान, योग, जीवन विज्ञान आदि का प्रशिक्षण दे रही हैं।
.
. 33
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org