Book Title: Jain Shramani Parampara Ek Sarvekshan
Author(s): Vijayshree Sadhvi
Publisher: Bharatiya Vidya Pratishthan

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Page 51
________________ जैन श्रमणी परम्परा : एक सर्वेक्षण और अब समाधान चाहते हैं कि योग्य, गुणी और ज्ञानवान चिरदीक्षिता साध्वी भी एक सामान्य नवदीक्षित साधु से निम्न स्थानीय क्यों मानी जाती हैं? चतुर्विध संघ उसे संघनायिका की गरिमा क्यों नहीं प्रदान करता? लोक व्यवहार में जब वह माता, ज्येष्ठ भगिनी आदि के रूप में पूज्यनीय बन सकती है, तो दीक्षा के पश्चात् लघु साधुओं द्वारा वंदनीय और पूज्यनीय क्यों नहीं रहती? आज का श्रमण वर्ग जब प्राचीन महासतियों का गुणानुवाद और स्तुति, वंदन इत्यादि कर सकता हैं तो अपने से पूर्व दीक्षिता साध्वी माता, साध्वी गुरूणी या स्थविरा साध्वी को नमन क्यों नहीं कर सकता, क्यों उसे बैठने, बोलने या आवास-निवास, विचार-गोष्ठी आदि में उच्च अथवा समान दर्जा नहीं दिया जाता? वस्तुतः इन वैदिक या बौद्ध संस्कृति के प्रभाव से ग्रस्त परम्पराओं के पुनर्मूल्यांकन की आज आवश्यकता है। श्रमण वर्ग को चाहिये कि वे अपने अहं का विसर्जन कर महावीर के समतावादी सिद्धान्तों की पुनर्स्थापना करने का साहसिक कदम उठाये। यथार्थ की दहलीज पर खड़े होकर श्रमणियों के साथ समता और सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार करें, उनकी प्रतिभा और 36 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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