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जैन श्रमणी परम्परा : एक सर्वेक्षण से छमासी, चारमासी आदि उग्र तप एवं सात मासखमण आदि किये। साध्वी प्रमुखा सरदारांजी कठोर तपाराधिका थीं। संघ संगठन व शासनोन्नति में इनका योगदान अपूर्व था। श्री हस्तूजी, श्री रम्भा जी, श्री जेतांजी, श्री झूमा जी, श्री जेठां जी आदि की तपस्याएँ इस भौतिक युग में चौंकाने वाली हैं। साध्वी प्रमुखा गुलाबांजी की स्मरण शक्ति और लिपिकला बेजोड़ थी। श्री मुखां जी अद्भुत क्षमता युक्त, आगमज्ञा साध्वी थीं। श्री धन्नाजी दीर्घतपस्विनी थीं, इन्होंने अन्य तपाराधना के साथ लघुसिंहनिष्क्रीड़ित तप की चारों परिपाटी पूर्ण कर संघ में तप के क्षेत्र में एक अद्भुत कीर्तिमान कायम किया। श्री लाडांजी उच्चकोटि की तपोसाधिका थी, इनके वर्चस्वी व्यक्तित्त्व से प्रभावित होकर अकेले डूंगरगढ़ से 36 बहनों व 5 भाइयों ने संयम अंगीकार किया। श्री मौला जी, श्री सोनांजी, श्री कंकूजी, श्री भूरां जी, श्री चांदा जी, श्री अणचांजी, श्री प्यारा जी, श्री भूरां जी, श्री नोजांजी, श्री तनसुखा जी, श्री मुक्खा जी, श्री जड़ाबांजी, श्री पन्ना जी, श्री भतू जी आदि ने विविध तपो अनुष्ठान कर अपनी आत्मशक्ति का परिचय दिया। श्री संतोका जी बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न साध्वी थीं, ये शल्य चिकित्सा लिपिकला, चित्रकला
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