Book Title: Jain Shramani Parampara Ek Sarvekshan
Author(s): Vijayshree Sadhvi
Publisher: Bharatiya Vidya Pratishthan

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Page 44
________________ जैन श्रमणी परम्परा : एक सर्वेक्षण श्री मोता जी बृहद् श्रमणी संघ की जीवन निर्मातृ थीं। श्री नानूकंवर जी बहुभाषाविद् व आगम ज्ञान में निष्णात थीं। दिवाकर सम्प्रदाय में श्री साकरकंवर जी, श्री कमलावती जी अत्यन्त विदुषी शास्त्र मर्मज्ञा एवं ओजस्वी वक्ता थी । कृशकाया में अतुल आत्मबल की धनी श्री पानकंवर जी ने 49 दिन के संथारे में जिस प्रकार देहाध्यास का त्याग किया वह अद्भुत था । वर्तमान में डॉ. सुशील जी, डॉ. चन्दना जी, डॉ. मधुबाला जी, श्री सत्यसाधना जी, श्री अर्चना जी आदि धर्म की अपूर्व प्रभावना में संलग्न हैं। लगभग 400-500 वर्षों से अनवरत प्रवहमान उक्त छः क्रियोद्धारकों की परम्परा में आज तक हज़ारों श्रमणियाँ हो चुकी हैं, किन्तु प्रामाणिकता पूर्वक उनकी निश्चित् गणना नहीं हो पाई । सन् 2005 के गणनीय आँकड़ों में इनकी संख्या 2953 आंकी गई हैं, किन्तु कइयों के नाम प्रकाशित सूची में नहीं आ पाये हैं। लगभग तीन हजार श्रमणी - वैभव से सम्पन्न यह सम्प्रदाय आज अधिकांश श्रमण संघ में विलीन है। इनमें गुजराती बृहद् संघ, रत्नवंश, ज्ञानगच्छ, साधुमार्गी, नानकगच्छ और जयमल सम्प्रदाय की कतिपय श्रमणियों के अतिरिक्त सभी सम्प्रदायों की लगभग 29 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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